सोलन: फ्रांस की प्रोफेसर ऐनिक विग्नेस ने हाल ही में डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में अपने दो माह के शैक्षणिक दौरे को संपन्न किया। यह दौरा अंतरराष्ट्रीय ACROPICS परियोजना का हिस्सा था, जिसमें 13 देशों के 15 संस्थान शामिल हैं। यह बहु-देशीय सहयोगात्मक पहल कृषि पारिस्थितिकी, कृषि बाजारों और प्राकृतिक खेती उत्पादों की मूल्य निर्धारण प्रणाली पर केंद्रित है। नौणी विश्वविद्यालय भी इस परियोजना का एक सदस्य है।
अपने प्रवास के दौरान प्रो. विग्नेस ने हिमाचल प्रदेश की मंडी प्रणाली का गहन अध्ययन किया। उन्होंने छैला, सोलन और परवाणू की मंडियों का दौरा कर कमीशन एजेंटों, व्यापारियों और विशेष रूप से सेब उत्पादकों से बातचीत की, ताकि मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया और किसानों द्वारा उचित मूल्य प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों को समझा जा सके।

उन्होंने विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग के साथ मिलकर प्राकृतिक खेती उत्पादों के मूल्य निर्धारण का अध्ययन किया और इसकी तुलना पारंपरिक खेती के दामों से की। चर्चाओं में उपभोक्ताओं की धारणा, प्रमाणन एवं लेबलिंग का महत्व और प्राकृतिक उत्पादों के बाजार मूल्य को बढ़ाने की संभावनाओं पर विशेष जोर दिया गया। साथ ही, उन्होंने कृषि अर्थशास्त्र, सांख्यिकी और व्यवसाय प्रबंधन के विद्यार्थियों के लिए विशेषज्ञ व्याख्यान एवं संवादात्मक सत्र आयोजित किए। इनसे विद्यार्थियों को वैश्विक दृष्टिकोण और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हुए।
शैक्षणिक गतिविधियों से परे, प्रो. विग्नेस ने पच्छाद (सिरमौर) और सोलन के प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों से भेंट की और विश्वविद्यालय के प्राकृतिक खेती खेतों एवं बिक्री आउटलेट, किरक्षी विज्ञान केंद्र सोलन (कंडाघाट), कृषि विज्ञान केंद्र रोहड़ू और क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, मशोबरा का दौरा किया। उन्होंने शिमला और रोहड़ू के सेब बागानों तथा विविध फसलों के मॉडलों को देखा, जहाँ किसान रसायन-मुक्त खेती को उच्च मूल्य बागवानी में अपना रहे हैं। इन दौरों ने उन्हें पारिस्थितिक खेती, फसल विविधीकरण और प्राकृतिक उत्पादों के विपणन की चुनौतियों की प्रत्यक्ष समझ प्रदान की।
इसके अतिरिक्त, उन्होंने सस्टेनेबल एग्रीकल्चर सिस्टम चौपाल और ग्राम दिशा ट्रस्ट जैसी जमीनी संगठनों के साथ भी संवाद किया, जो किसान उत्पादक समूहों और प्राकृतिक खेती समुदायों के साथ कार्य कर रहे हैं। इन चर्चाओं ने दर्शाया कि किस प्रकार सामुदायिक पहल किसानों की बाजार में सौदेबाजी की क्षमता को बढ़ाकर न्यायसंगत विपणन का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं।
प्रो. विग्नेस के इस दौरे ने हिमाचल की मंडी प्रणाली और प्राकृतिक खेती परिदृश्य की गहरी समझ विकसित की है, विश्वविद्यालय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के बीच शैक्षणिक सहयोग को मजबूत किया है तथा अनुसंधान एवं नीतिगत विश्लेषण में नई वैश्विक पद्धतियों का परिचय दिया है। उनके प्रयासों से मूल्य संचरण, उपभोक्ता व्यवहार, टिकाऊ कृषि प्रोत्साहन और किसान कल्याण जैसे नए शोध क्षेत्रों के द्वार भी खुले हैं।
उनका यह दो माह का योगदान, ACROPICS परियोजना के उस मिशन को मजबूती प्रदान करता है, जिसका उद्देश्य सतत, न्यायसंगत और समावेशी कृषि बाजारों को बढ़ावा देना है, साथ ही यह विद्यार्थियों के सीखने, किसानों की भागीदारी और अंतरराष्ट्रीय शैक्षणिक आदान-प्रदान को और अधिक सशक्त बनाता है।