सोलन: परम पूज्य आचार्य श्री सुबल सागर ने कहा कि हर दिन हमें किसी न किसी की सहायता करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अहिंसा को ही जीवन का ध्येय बनाना चाहिए। हर जीव में प्राण से प्रिय कुछ नहीं है। प्राण दान सोना के दान से भी अधिक फलदायी है।
आचार्य सुबल सागर जी महाराज ससंघ चंडीगढ़ जैन मंदिर से शिमला स्थित जैन मंदिर की ओर विहार करते समय सोलन के देऊंघाट स्थित जैन परिवार के घर पर आहार के लिए रूके थे। यहां सुशील जैन, संजय जैन और आरती जैन ने उनके आहार की व्यवस्था की थी।
यहां बातचीत में उन्होंने कहा कि हम लोगों को शाकाहार के लिए जागरूक कर रहे हैं। जीव की रक्षा का भाव ही हमें अहिंसा के रास्ते पर ले जाएगा, जो आज समय की जरूरत है। चंडीगढ़ से चातुर्मास करने के बाद शिमला विहार को निकले हैं। जैन साधु एक जगह नहीं रूकते। उन्होंने कहा कि जैन धर्म की पांच शिक्षाओं सत्य बोलना, चोरी न करना, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, परिगृह परिमाण इसकी शिक्षा देते हैं। मांसाहार स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं है। इसलिए लोगों को शाकाहार करना चाहिए। वह अपने धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करने और धर्म के प्रति समर्पित रहने के लिए लोगों को जागरूक करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि दिगम्बर जैन मुनि अपने शरीर को इतना कष्ठ क्यों देते हैं। सोलन के 15 से 18 डिग्री तापमान में भी उनके तन पर कोई कपड़ा नहीं। उन्होंने कहा कि अध्यात्म में सोच नहीं, साधना कठिन है, जिसकी दृष्टि आत्मिक है, उसे कठिन लगेगा, जिसकी दृष्टि सांसारिक है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं। उन्होंने कहा कि यदि आम आदमी झूठ, चोरी, हिंसा से बचें और परिगृह परिमाण करें तो यही उसे श्रेष्ठ व्यक्ति बना देता है।
आज सोलन में रात्रि विश्राम के उपरांत कल सुबह ससंघ आचार्य शिमला के लिए विहार करेंगे। जैन संतों की दिनचर्या कठिन वह दिन में एक बार ही आहार लेते हैं। प्रतिदिन 10 से 15 किलोमाटर की पदयात्रा करते हैं। आचार्य के साथ पांच संत और अन्य सहयोगी भी इस यात्रा में उनके साथ है।