सोलन के जीया लाल ने दिल्ली में किया विरासती संस्कृति का प्रदर्शन

सोलन: विरासती संस्कृति के क्षेत्र में कई दशकों से कार्य कर रहे सोलन के लोक कलाकार जीया लाल ठाकुर ने दिल्ली में न सिर्फ अपनी वैदिक व विरासती संस्कृति का प्रदर्शन किया बल्कि छंदों व मात्राओं के रहस्यों का भी प्रमाणिकता के साथ प्रदर्शन किया। हाल ही में

इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला अनुसंधान केंद्र में जीया लाल ठाकुर व सरगम कला मंच सोलन के कलाकारों द्वारा शोधकर्ताओं के लिए विशुद्ध विरासती संस्कृति का प्रदर्शन किया गया।  इस प्रस्तुति में शिव सूत्रों, छ्न्द की उत्पत्ति, छ्न्द से लय की पांच जातियों, लय की पांच जातियों से छंदों पर आधारित डंके की शैली के नौगत तालों के छंदों, जातियों, मात्राओं, डंकों के रहस्यों को प्रमाणिकता सहित प्रदर्शित किया गया। मुंह बोली, सुनी सुनाई, मंघडन्त दंतकथाओं से बाहर निकालने के लिए नौगत तालों की पारंपरिकता में शास्त्रीय संगीत उत्पन्न करने वाले लोक संगीत को कुतप वाद्यों सहित  चार ग्रहों की लोक गाथाओं के प्रदर्शन किए गए।

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जीया लाल ठाकुर ने बताया कि देव धनाक्षरी छंद और चतुस्त्र जाती के ताल में कुतप वाद्यों सहित गायत्री मंत्र तथा महामृत्युंजय मंत्र गायन में योग प्रदर्शन किया गया। ये गहन व गंभीर रहस्य हैं जो हमारी विशुद्ध विरासती संस्कृति की प्रमाणिकता के सिद्धांत क्क॥ष्ठ के छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किए गए। लय की पांच जातियों डंके की शैली से और लय की पांच जातियों पर आधारित मेंट्रॉनौम सॉफ्टवेयर के सिद्धांत पर गहनता से व्याख्यान किया गया। वर्तमान में कंप्यूटर से संगीत रिकार्डिंग के लिए जो आधुनिक सोफ्टवेयर खोजा है वो लय की पांच जातियों  से विकसित है। लय की पांच जातियों छंद शास्त्र से विकसित होने के प्रत्यक्ष प्रदर्शन विशुद्ध विरासती संस्कृति की प्रमाणिकता के लिए किए गए ताकि भावी पीढिय़ां इस विषय से प्रमाणित तथ्यों से अवगत हो सकें।

प्रति दिन तीन, तीन घंटों तक के प्रदर्शन में चार ग्रहों की एकल, युगल, व सामूहिक निबद्ध और अनिबद्ध लोक गाथाओं को छंदों,ताल की जाती और ग्रह सहित दर्शाया गया। विशुद्ध विरासती संस्कृति के गर्भ गृह हिमाचल प्रदेश और मात्र हमारे प्रदेश में वैदिक कलाओं के मूल तत्व देव दोष के भय से आज भी जीवित रहने के रहस्यों को उजागर किया गया। उन्होंने कहा कि बची हुई विशुद्ध संस्कृति को बिगाडऩे वाले भले ही स्टार हैं और इसे बचाने वाले बेकार हैं। फिर भी अपनी 43 वर्षों की खोज और तपस्या भावी पीढिय़ों के लिए अर्पित करना मानव धर्म समझता हूं ताकि विकसित बुद्धि की हमारी वर्तमान और भावी पीढिय़ां सुसंस्कृत और संस्कारी बनने की और अग्रसर हो सकें।  

नटराज भगवान शिव द्वारा तांडव और लास्य नृत्य करते हुए सृष्टि के प्रथम नर-मदीन अवनद्ध वाद्य डमरू से नौ और पांच सूत्र उत्पन्न किए गए। इनमें ताण्डव और लास्य नृत्य के योग से नाटी नृत्य उत्पन्न हुआ। स्वर, व्यंजन, ताल के नर -मदीन, लघु वर्ण, लय और गणित अंकों से व्याकरण सूत्र की उत्पत्ति हुई, जिसकी रचना पाणिनी महाराज ने की थी। परन्तु  छंद शास्त्र की रचना पाणिनी महाराज के समकालीन भाई पिंगलाचार्य ने की थी। जब उन्होंने छंद शास्त्र की रचना की तो लोग उन्हें पागलों का आचार्य बताते थे, लेकिन जब संगीताचार्यों को ये विषय समझ आया तो समाज को मालूम हुआ कि संगीत कला की उत्पत्ति शिव सूत्रों से परन्तु विकास और विस्तार छंद शास्त्र से हुआ है। गद्य से पद्य गण पाठ ने परिवर्तित किए परन्तु छंद की उत्पत्ति कुतप के नर मदीन अवनद्ध अर्थात ताल वाद्यों से है। ये गहन विषय लॉर्ड मैकाले के षडयंत्र के परिणाम स्वरूप शिक्षा प्रणाली में ही नहीं।