नाहन : शहर में रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर पतंगबाजी केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक परंपरा रही है। यह परंपरा सिरमौर रियासत के शासक राजा शमशेर प्रकाश के समय से जुड़ी है। कहा जाता है कि राजा स्वयं महल की छत से पतंग उड़ाया करते थे और जो भी उनकी पतंग काटता था, उसे दरबार में बुलाकर सम्मानित किया जाता था। इस शाही परंपरा ने नाहन की पतंगबाजी को एक विशेष पहचान दी, जो आज भी लोगों के दिलों में जीवित है।
हर साल रक्षाबंधन के दिन नाहन की फिज़ा रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाती है। बच्चे, युवा और बुज़ुर्ग सभी छतों पर चढ़कर पतंगबाजी का आनंद लेते हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों में इस पारंपरिक पर्व की सुंदरता को चाइना डोर जैसे खतरनाक तत्व ने धूमिल कर दिया है।

चाइना डोर, जो प्लास्टिक, नायलॉन और कांच के महीन टुकड़ों से बनी होती है, बेहद तेज़ और खतरनाक होती है। इसकी वजह से न केवल पतंग उड़ाने वालों को चोट लगती है, बल्कि राह चलते बाइक सवार और आकाश में उड़ते पक्षी भी इसकी चपेट में आ जाते हैं।
रानीताल के अनिल कुमार बताते हैं कि पिछले वर्ष उनका बेटा पतंग उड़ाते समय चाइना डोर से बुरी तरह घायल हो गया था। उंगली इतनी गहराई से कट गई कि टांके लगाने पड़े। इसी तरह रेणुका रोड निवासी सतीश धीमान ने बताया कि वह बाइक चला रहे थे, तभी अचानक चाइना डोर उनके गले में फंस गई। “हेलमेट न होता तो शायद जान नहीं बचती,” उन्होंने कहा।
पक्षी प्रेमी आशीष ठाकुर ने बताया कि रक्षाबंधन के अगले दिन उन्हें कई घायल पक्षी मिले जिनके पंख और गर्दन चाइना डोर से कटे थे। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि “हर साल ये मौत का जाल पक्षियों को लील जाता है,” ।
हालांकि चाइना डोर पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों ने पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन नाहन बाजार में कुछ दुकानदार चोरी-छिपे इसे बेच रहे हैं। इस पर एसडीएम नाहन राजीव संख्यान ने सख्त चेतावनी दी है। उन्होंने कहा “यदि बाजार में कोई व्यक्ति या दुकानदार चाइना डोर बेचता पाया गया, तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस को विशेष निर्देश दे दिए गए हैं कि वह इस पर सख्त निगरानी रखें।”
प्रशासन ने जनता से अपील की है कि वे केवल पारंपरिक सूती डोर या पर्यावरण अनुकूल सामग्री का ही उपयोग करें। किसी भी जगह यदि चाइना डोर बिकती दिखाई दे, तो उसकी सूचना तुरंत प्रशासन या पुलिस को दें।
रक्षाबंधन का यह त्योहार जब भाई-बहन के रिश्ते के साथ पतंगबाजी की ऐतिहासिक परंपरा को जोड़ता है, तब इसकी गरिमा बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। राजा शमशेर प्रकाश की वह संस्कृति, जिसमें प्रतिस्पर्धा के साथ सम्मान जुड़ा था, आज भी प्रेरणा है – लेकिन वह पतंगबाजी सुरक्षा और संवेदनशीलता के साथ होनी चाहिए।