नाहन: सिरमौर जिला के क्रिकेट कोचिंग कैंप में आज भी सबसे अधिक नजर आने वाला चेहरा मोहन शर्मा ही है। 73 साल की उम्र में भी उनके अंदर क्रिकेट के प्रति गहरा प्रेम और जूनून देखने को मिलता है। उनके समर्पण और जुनून की मिसाल इस बात से मिलती है कि वह हर समय ग्राउंड में खिलाड़ियों के साथ मौजूद रहते हैं।
मोहन शर्मा की मेहनत और लगन से यह साफ दिखाई देता है कि वह न केवल तकनीकी प्रशिक्षण में, बल्कि खिलाड़ियों की मानसिक तैयारी में भी पूरी तरह से जुटे रहते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य सिर्फ क्रिकेट कौशल में सुधार करना नहीं है, बल्कि युवाओं में टीम स्पिरिट, समर्पण और खेल के प्रति सच्चे प्रेम की भावना को भी विकसित करना है।
मोहन शर्मा का जन्म हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के नाहन में हुआ। बचपन से ही क्रिकेट के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। उस समय क्रिकेट केवल बड़े शहरों और राजा-महाराजाओं तक सीमित था। सिरमौर के महाराज राजेंदर प्रकाश द्वारा नाहन के ऐतिहासिक विला राउंड मैदान में खेले जाने वाले टेनिस बॉल क्रिकेट मैचों से प्रेरित होकर मोहन शर्मा ने क्रिकेट को अपने जीवन का हिस्सा बनाया।
1966 में कॉलेज क्रिकेट टीम में शामिल होकर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की। इसके बाद वह पंजाब यूनिवर्सिटी की बी डिवीजन टीम में खेले और फाइनल तक पहुंचे। 1973 में उन्होंने एन.आई.एस. पटियाला से कोचिंग के लिए प्रशिक्षण लिया और विकेटकीपर एवं मिडल ऑर्डर बल्लेबाज के रूप में अपनी पहचान बनाई।
1978 में गोवा में अपनी पहली नौकरी शुरू करते हुए उन्होंने क्रिकेट की नींव रखने का काम किया और तीन वर्षों तक अंडर-17 और अंडर-19 टीमों को प्रशिक्षित किया। बाद में उनका स्थानांतरण करनाल और फिर कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी में हुआ, जहां उन्होंने हर साल 7-8 खिलाड़ियों को यूनिवर्सिटी टीम में चयनित होने में मदद की।
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी (एचपीयू), शिमला के कोच के रूप में उन्होंने कई खिलाड़ियों को रणजी ट्रॉफी तक पहुंचाया, जिनमें रमेश ठाकुर और अमित शर्मा जैसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी शामिल हैं। 1986 से 1992 के बीच पटना यूनिवर्सिटी में रहते हुए उनकी टीम ने तीन बार इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप जीती और दो बार उपविजेता रही। इस दौरान 8-10 खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी में जगह बनाने में सफल हुए।
1996 में वह एचपीयू लौटे और वहां की टीम को पहली बार नॉर्थ जोन सेमीफाइनल में पहुंचाया। इसके बाद उन्होंने जिला स्तर पर अंडर-14 से लेकर सीनियर टीमों तक कोचिंग दी। सेवानिवृत्ति के बाद मोहन शर्मा ने सिरमौर क्रिकेट एसोसिएशन के तहत युवाओं को मुफ्त कोचिंग देना शुरू किया। वह सिरमौर के सभी क्रिकेट कैंप्स में सक्रिय रहते हैं और नए खिलाड़ियों को प्रेरित करते हैं। उनका मानना है कि क्रिकेट ने उन्हें बहुत कुछ दिया है, और इसे वापस लौटाना उनका कर्तव्य है।
आज, 73 वर्षीय मोहन शर्मा सिरमौर क्रिकेट के लिए एक आदर्श और प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके मार्गदर्शन में कई खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर सफलता हासिल की है। क्रिकेट के प्रति उनका समर्पण और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि जुनून और मेहनत से हर सपना पूरा किया जा सकता है। मोहन शर्मा की पत्नी गृहिणी हैं, और उनके दो बच्चे दिल्ली में बस गए हैं।