नाहन: शहर के बीचों-बीच बने नगर परिषद पार्क और लखदाता पीर के समीप का इलाका अब श्रद्धा और सुकून नहीं, बल्कि शर्म और असहजता का कारण बनता जा रहा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि हर शाम कुछ युवक-युवतियां पार्क में आपत्तिजनक अवस्था में बैठे दिखाई देते हैं, जिससे वहां टहलने आने वाली महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे असहज महसूस करते हैं और अक्सर लौटने को मजबूर हो जाते हैं।
स्थानीय महिला निवासी ने नाराजगी जताते हुए कहा, “हम अपने बच्चों के साथ वहां घूमने जाते हैं, लेकिन जो दृश्य पार्कों में देखने को मिलते हैं, वह शर्मसार करने वाले हैं। अब तो यह रोज़ का नज़ारा बन गया है।”

इसी तरह का नज़ारा नाहन के प्रसिद्ध रानीताल क्षेत्र में भी आम होता जा रहा है। रानीताल न केवल शहर का एक प्रमुख पार्क है, बल्कि यहां भगवान शिव का मंदिर भी स्थित है, जहां श्रद्धालु नियमित रूप से पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि मंदिर परिसर के आसपास भी कुछ युवक-युवतियां आपत्तिजनक अवस्था में बैठे देखे जा सकते हैं, जिससे श्रद्धालुओं की भावनाएं आहत होती हैं और आस्था स्थल की पवित्रता पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अब यह स्थिति केवल लखदाता पीर पार्क, रानीताल, पुराने नगर परिषद भवन के समीप शिव मंदिर के सामने बने पवेलियन और विला राउंड तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि अन्य धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों तक भी फैल चुकी है। ये सार्वजनिक स्थल अब नशेड़ियों और ‘आशिकों’ के अड्डों में बदलते जा रहे हैं। शाम ढलते ही यहां आपत्तिजनक हरकतें शुरू हो जाती हैं, जिससे आसपास के दुकानदार, राहगीर और स्थानीय परिवारों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। नशे की हालत में युवक और सार्वजनिक स्थानों पर किया जा रहा अशोभनीय व्यवहार, न केवल सामाजिक मर्यादा को ठेस पहुंचा रहा है, बल्कि शहर की गरिमा पर भी सीधा प्रहार कर रहा है।
लोगों ने पुलिस प्रशासन से मांग की है कि इन सार्वजनिक स्थलों पर नियमित गश्त की जाए, सीसीटीवी की निगरानी बढ़ाई जाए और मौके पर पकड़े गए युवक-युवतियों के अभिभावकों को बुलाकर सख्ती से पूछताछ की जाए ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।
अब सवाल यह उठता है कि क्या सार्वजनिक स्थलों पर इस तरह की गतिविधियों को यूं ही नजरअंदाज किया जाता रहेगा? क्या समाज की मर्यादा और सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा केवल कागज़ों तक ही सीमित रह गई है? जब आम जनता असहज और परेशान महसूस करने लगे, तब क्या पुलिस और नगर परिषद की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे सख्त कार्रवाई करें? अक्सर देखा गया है कि जब माहौल पूरी तरह बिगड़ जाता है, तभी संबंधित अधिकारी जागते हैं। अब समय आ गया है कि ऐसी घटनाओं को हल्के में लेने की बजाय ठोस कदम उठाए जाएं ताकि शहर की संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखा जा सके।