सोलन: बागवानी और वानिकी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता में सुधार के लिए सटीक खेती प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आज डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुई। मृदा विज्ञान और जल प्रबंधन विभाग के प्रिसिजन फार्मिंग डेवलपमेंट सेंटर (पी॰एफ॰डी॰सी॰) द्वारा इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्री साइंटिस्ट्स (आई॰एस॰टी॰एस॰) के सहयोग से आयोजित इस सेमिनार में किसानों, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और देश भर में विभिन्न संस्थानों के विशेषज्ञों सहित 200 प्रतिभागियों भाग ले रहे हैं।
उद्घाटन समारोह में हिमाचल प्रदेश के बागवानी सचिव सी. पालरासू मुख्य अतिथि रहे। नौणी विवि के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल और शूलीनी विवि के कुलाधिपति और आई॰एस॰टी॰एस॰ अध्यक्ष प्रो. पी.के. खोसला वशिष्ट अतिथि रहे।
अपने संबोधन में बागवानी सचिव ने किसानों के खेत में अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को लाने के प्रयासों के लिए विश्वविद्यालय और पी॰एफ॰डी॰सी॰ की सराहना की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कृषि क्षेत्र सरकार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि किसान अपनी कृषि गतिविधियों से अधिकतम रिटर्न प्राप्त करें। उन्होंने किसानों और युवाओं को नई प्रौद्योगिकियों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया और प्राकृतिक खेती और टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देने वाली सरकार की पहल पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर चंदेल ने पानी की कमी और भूमि क्षरण की गंभीर चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए पी॰एफ॰डी॰सी॰ से अपने लक्ष्यों को समकालीन कृषि आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने का आग्रह किया। उन्होंने विशेष रूप से हिमालयी कृषि के लिए पी॰एफ॰डी॰सी॰ के कार्यक्रमों में प्राकृतिक खेती जैसी पर्यावरण अनुकूल पद्धति के एकीकरण की वकालत की और प्रभाव आकलन करने के महत्व पर जोर दिया। प्रोफेसर खोसला ने किसानों की आजीविका के लिए वृक्ष फसल-पशु वानिकी के महत्व पर चर्चा की और इंडियन सोसाइटी ऑफ ट्री साइंटिस्ट्स के कार्यों के बारे में बताया।
इससे पहले कार्यक्रम में मृदा विज्ञान और जल प्रबंधन विभाग के विभाग अध्यक्ष और सेमिनार संयोजक डॉ. उदय शर्मा ने प्रतिभागियों का स्वागत किया और मूल्यवान प्रतिक्रिया के लिए सटीक खेती में किसानों की भागीदारी के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि सेमिनार एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एम॰आई॰डी॰एच॰) द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना की एक प्रमुख पहल का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य किसानों, वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं के बीच नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना है।
इस अवसर पर अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने बताया कि पी॰एफ॰डी॰सी॰ ने सूक्ष्म सिंचाई और संरक्षित खेती के लिए विशिष्ट सिफारिशें विकसित की हैं, साथ ही फलों, फूलों और सब्जियों के लिए पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक व्यापक पैकेज ऑफ प्रैक्टिस भी विकसित किया है। केंद्र ने एल॰डी॰पी॰ई॰-लाइन वाले भंडारण टैंकों के माध्यम से लागत प्रभावी वर्षा जल संचयन समाधान भी पेश किया है।
पिछले कुछ वर्षों में, पीएफडीसी ने लगभग 2,500 किसानों को 70 प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से प्रशिक्षित किया है और ग्रीन हाउस संचालन और सूक्ष्म सिंचाई में 200 से अधिक व्यक्तियों का कौशल विकास किया है। आयोजन सचिव डॉ सुधीर वर्मा ने इस अवसर पर धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
पीएफडीसी की स्थापना 1995-96 में मृदा विज्ञान और जल प्रबंधन विभाग के भीतर की गई थी, जो भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय परिशुद्ध कृषि और बागवानी समिति द्वारा समर्थित थी। इसका प्राथमिक उद्देश्य कृषि और बागवानी विभाग के अधिकारियों सहित किसानों और हितधारकों को नवीनतम बागवानी प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना है।