2 महीने के बेटे को गोद में ले बड़वास की बेटी और कफोटा की पुत्र वधू “रेखा ” बनी स्नातकोत्तर शिक्षक

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नाहन : जब ठान कर किसी काम में जुटा जाए तो सफलता हर हाल में मिलती है। यह भी बखूबी साबित किया जा सकता है कि महिला किसी भी क्षेत्र में किसी से भी पीछे नहीं है। यह बात सिरमौर जिला के बड़वास की बेटी व कफोटा की पुत्र वधू रेखा ठाकुर पर सटीक बैठती हैं जिनका चयन आज एचपी पीजीटी (हिंदी ) में हुआ है।

सिरमौर जिला के बड़वास (चाननु ) की रहने वाली रेखा ठाकुर ने चौकी मृगवाल के स्कूल से दसंवी तक की पढ़ाई की। उन्होंने अपनी जमा दो की की पढाई स्कूल सतोन स्कूल से की। स्नात्तोत्तकर की पढ़ाई उन्होंने घर पर प्राइवेट ही की।

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उसके बाद उन्होंने डाइट नाहन से अपनी डी एल एड की। अपनी एम् ए (हिंदी) और बीएड उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से की। उन्होंने 2020 में रेखा सिरमौर जिला के जुइनल कफोटा के अनिल कुमार के साथ परिणय सूत्र में बंध गई। अपनी शादी के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी। उनके पति अनिल कुमार ने भी उनका बखूबी साथ दिया जो कि पांवटा साहिब में एक निजी कंपनी में काम करते हैं।

रेखा की सफलता में अहम बात यह है कि वो दो बच्चों की माँ है और उनका बेटा अभी सिर्फ 2 महीने का है। उनकी बेटी भी अभी महज 2 वर्ष की है। यही नहीं जब वह शिमला पीजीटी का पेपर देने गयी तब वह 8 महीने के गर्भवती थी। उनके बेटे का जन्म 23 मई को हुआ है। उन्होंने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों की परवरिश का भी ध्यान रखना था। लेकिन रेखा ने इन सब जिम्मेदारियों के बावजूद अपनी पढ़ाई को निरंतर जारी रखा। यही नहीं अपनी पढाई के साथ-2 उन्होंने ब्राइट बिगिनिंग एकेडमी पांवटा साहिब में पढ़ाने का कार्य भी किया।

रेखा ठाकुर ने बातचीत में बताया कि बताया कि वह 6 भाई-बहन है। उनके पिता गुमान सिंह बड़वास पंचयात के उप प्रधान है और उनकी माता माया देवी ग्रहणी है। उन्होंने बताया कि पहले माता-पिता और अब सास और जेठ-जेठानी सहित पति का साथ मिला। उन्होंने कहा कि उनकी सफलता में ब्राइट बिगिनिंग एकेडमी के संचालक भीम चौहान का भी काफी बड़ा रोल है जिन्होंने उनका समय – समय पर उनका मार्गदर्शन किया। उन्होंने बताया कि उनके पति अनिल ने भी उनको हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी, इसका नतीजा है कि वह आज स्नातकोत्तर शिक्षक बनने में सफल हो पाई है। उन्होंने कहा कि शिरगुल महाराज की कृपा और परिवार के सहयोग से आज वो यहाँ तक पहुंच पायी है।

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