कौशिश

कौशिश आखिर क्या है यह कौशिश? कोई रहस्य है या कोई साजिश? असमंज में हूं क्या है यह कौशिश।। सबकी अपनी अलग विचारधारा गुरू ने कहा कि कौशिश करने ने शिष्य के जीवन को संवारा डाक्टर ने कहा कौशिश कर मैने मनुष्य जीवन को दिया सहारा माता-पिता ने कहा कोशिश कर हमने अपनी संतान का ...

जीवन एक कश्ती है

जीवन एक कश्ती है जिस पर दुनिया नाविक है वो इंसान जिसने हमेशा किया अपना गुणगान दुख-सुख से भरा सागर होगा जिसमें जीवन को बेहना होगा।। कभी होंगे दुख के भंवर तो कभी सुख की लहरें धर्म के नाम पर भी होंगे जीवन में कई पहरे।। जीवन का संतुलन जो बिगडा तो इंसान करेगा ईश्वर ...

मेरी तड़त का मतलब!

मेरा शरीर मेरा है| जैसे चाहूँ, जिसको सौंपूँ! हो कौन तुम- मुझ पर लगाम लगाने वाले? जब तुम नहीं हो मेरे मुझसे अपनी होने की- आशा करते क्यों हो?   पहले तुम तो होकर दिखाओ समर्पित और वफादार, मैं भी पतिव्रता, समर्पित और प्राणप्रिय- बनकर दिखाऊंगी| अन्यथा- मुझसे अपनी होने की- आशा करते क्यों हो? ...

नई सुबह का इन्तजार

ढूंढता रहा खजाना खुशियों का भौतिकता की चकाचौंध से ऊंची दुकानों में फीके पकवानों में जलाता रहा दीपों की पंक्ति निराशा का अन्धेरा मिटाने की चाह में मगर दीपों की पक्तियां बुझती रही अन्धेरा बढता रहा भयावना और भयावना बुझ चुका था अन्तिम दीप भी सनसनाती हवा के झोंके से केवल इन्तजार था अब फिर ...

उदासी का सफर

समय की उदासी में जब धुन्ध घने पेडों से ऊपर उडती बादलों में समा जाती है निरन्तर बरसते बादल प्रातः के सूरज की चमचमाती रश्मियों को छीन लेते है फिर काली घटाओं में फैलता उदासी का सफर लम्बा हो जाता है और बरसात की सुलगती यादों में पुनः पुनः खो जाता है ।

आगमन है आज बसन्त का

ऊंचे हिमाच्छादित शिखरों पर फैला आसमान हरे भरे देवदार के वृक्षों की शोभा मध्य में बहता प्रपात सर्द झोंको से शोभायमान हिलते डुलते पुष्पों से लदे वृक्षों की शोभा गुंजन करते भंवरे कली कली का करते रस पान आगमन है आज बसन्त का आगमन है आज बसन्त का ।

अगला जन्म

कितना भ्रमित मन कि इक बार का मिलन मांगता था सदैव, पर क्या दे पाये तुम कोई नया संदेश, उकेर दी तुमने कई नई रेखायें मेरे मानस पटल पर, द्वंद मचा दिया ह्र्दय स्थली पर व चुपचाप चल दिये मुझे छोड फिर से तपती, और तपती रेत पर | मृगमरिचिका सा मन सदैव तुम्हारे सानिध्य ...

तुम

तुम्हारा जाना मेरे लिये आम बात नही मैं अनाथ सी हो गई हूं क्योंकि तुम मेरी जिन्दगी में सर्दी की धूप गर्मी की ठंडक थे | मेरे अन्दर उत्साह का धुंआ भरते जो कभी कामयाबी की आग पकडता लगता, हर व्यक्ति को सहारा चाहिये उत्साह चाहिये क्योंकि तभी वो खुद उठकर परिवार, समाज व राष्ट्र ...

आधुनिकता या पिछडापन

आधुनिकता की दौड में मनुष्य खोता जा रहा अपना अस्तित्व, पहचान | सिमटता और शायद सिंकुडता जा रहा कुछ एक उपकरणों का साथ लेकर | भूल गया, चैन से जीना, चौपाल की मस्ती, चिट्ठी का मजा, चुल्हे की रोटी, पीपल की छांव, कबड्डी का खेल, शादी के गीत, विछोह के आंसू | मैं इसे क्या ...

नन्ही कली

नन्ही कली जो मसल दी गई फूल बनने से पहले पुकारती, चीखती सी कहती मां से, मां तुम इतनी निष्ठुर कैसे हो गई, जानती हो तुम कि आधार है लडकी इस समाज का, रंगहीन है संसार इसके बिना, दो वंशों की आन है लडकी और तुम-तुम इसे गर्भ में मिटाने पर तुली हो, बदलनी है ...