नौणी विश्वविद्यालय की प्राकृतिक खेती पहल की सराहना की

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By Hills Post

सोलन: खाद्य प्रणालियों को बदलने और कृषि पारिस्थितिकी- प्रणालीगत परिवर्तन के लिए एकीकरण पर उत्तरी क्षेत्र के लिए एक सहयोगी सम्मेलन नौणी स्थित डॉ. यशवंत  सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है।

कंसोर्टियम फॉर एग्रो इकोलॉजिकल ट्रांसफॉर्मेशन (CAT)-नॉर्थ चैप्टर द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में देश भर से प्रतिभागियों भाग ले रहे हैं। इसका लक्ष्य भारत के कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के लिए एक साझा दृष्टिकोण और कार्रवाई योग्य एजेंडा का सह-निर्माण करना है। प्रणालीगत अंतर्संबंधों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, यह आयोजन अनुसंधान, नीति, बाजार, जमीनी स्तर पर हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी, मशीनीकरण, निवेश, उद्यम, मूल्य श्रृंखला विकास, पर्यावरणीय स्थिरता, स्वास्थ्य और पोषण सहित महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर प्रकाश डालेगा। नागरिक समाज संगठनों, शोधकर्ताओं, थिंक टैंक, फंडर्स और सरकारी निकायों से उपस्थित प्रतिभागियों के विविध समूह ने कृषि पारिस्थितिकी के लिए एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण को आकार देने में हितधारकों की भूमिकाओं की एकीकृत समझ बनाने के लिए चर्चा में भाग ले रहे हैं।

अपने मुख्य भाषण में प्रसिद्ध खाद्य नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि सुरक्षित, स्वस्थ भोजन की बढ़ती वैश्विक मांग को केवल उन कृषि प्रथाओं के माध्यम से पूरा किया जा सकता है जो हानिकारक रासायनिक आदानों का इस्तेमाल नहीं करती हो क्योंकि रासायनिक आदानों से काफी पर्यावरणीय और सामाजिक नुकसान हो चुका है। शर्मा ने रसायन-सघन खेती से कृषि-पारिस्थितिकी प्रणालियों की ओर बदलाव के महत्व पर जोर दिया, जिससे सभी को, विशेषकर मानव स्वास्थ्य को लाभ हो।

मूल्य संवर्धन के संबंध में, शर्मा ने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे सिर्फ शब्द से प्रभावित न हों, बल्कि यह सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करें कि अतिरिक्त मूल्य से किसानों को वास्तव में कितना लाभ हुआ है। उन्होंने स्टार्टअप और किसान उत्पादक संगठनों को यह सुनिश्चित करने के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए प्रोत्साहित किया कि उनके द्वारा कृषि उपज की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर न हो। उन्होंने जोर देकर कहा कि उचित मूल्य निर्धारण किसानों को स्वस्थ भोजन पैदा करने और खाद्य उत्पादकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए प्रेरित करेगा। शर्मा ने कृषि क्षेत्र के लिए सरकारी सब्सिडी का ‘दैत्यकरण’ न करने का भी आह्वान किया।

प्राकृतिक कृषि पर शर्मा ने कृषि पारिस्थितिकी प्रथाओं विशेष रूप से प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने में विश्वविद्यालय के काम की सराहना की। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे देश कृषि पारिस्थितिकी में इस परिवर्तन में आगे बढ़ेगा, विश्वविद्यालय का योगदान और अधिक स्पष्ट हो जाएगा। उन्होंने पहाड़ी खेती की अनूठी जरूरतों को पहचानने की भी वकालत की और आग्रह किया कि इसे मैदानी खेती से अलग रखा जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि पद्धतियों के लिए पहाड़ी खेती में वानिकी, पशुपालन और स्थानीय पारिस्थितिकी का एकीकरण आवश्यक है।

इससे पहले सत्र में, खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक उमेंद्र दत्त ने प्रतिभागियों का स्वागत किया। उन्होंने खेती को देश की ‘जीवन रेखा’ कहा और कृषि को लंबे समय से चली आ रही हरित क्रांति के ‘दुष्चक्र’ से मुक्त करने के लिए प्राकृतिक खेती की क्षमता पर जोर दिया। एग्रोइकोलॉजी फंड के संचालन निदेशक मिन्हाज अमीन ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किये।  उपस्थित लोगों में पद्मश्री नेक राम शर्मा, अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान, बागवानी कॉलेज के डीन डॉ. मनीष शर्मा, निदेशक विस्तार डॉ. इंद्र देव, वित्त नियंत्रक ध्यान सिंह चौहान सहित अन्य लोग शामिल रहे।

शुक्रवार को, प्रतिभागियों ने क्षेत्र में कृषि संबंधी प्रथाओं के बारे में जानने और समझने  के लिए विश्वविद्यालय फार्मों, विवि का यूएचएफ नेचुरल आउटलेट और स्थानीय फार्मों का दौरा किया।

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