सोलन: हाब्बी मानसिंह कला केंद्र के संस्थापक एवं अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोक कलाकार जोगेंद्र हाब्बी ने बताया कि सिरमौर जिला की वेशभूषा एवं लोक नृत्य में प्रयोग किए जाने वाले पारंपरिक परिधानों को सुंदर व आकर्षक बनाने का कार्य आरंभ किया गया है। हाब्बी मानसिंह कला केंद्र ने बिना किसी वित्तीय सहायता के कलाकारों को प्रशिक्षण प्रदान किया है। अब लगभग पिछले दो महीनों से परिधानों पर कढ़ाई करने का कार्य प्रगति पर हैं। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के अन्य जिलों के परिधानों की अपेक्षा सिरमौर जिला के पारंपरिक परिधान काफी सीधे-सादे हैं।
किन्नौर, लाहौल स्पीति, कुल्लू, चंबा आदि अन्य जिलों के परिधानों की सुंदरता में पिछले कई दशकों से काफी बदलाव आया है, परंतु सिरमौर जिला में यहां के परिधानों की सुंदरता को बढ़ाने के प्रयास का अभाव रहा। परिधानों को आकर्षक बनाने की जरूरत को महसूस करते हुए जोगेंद्र हाब्बी द्वारा पारंपरिक तरीके से कढ़ाई करके परिधानों को और अधिक आकर्षक बनाने का कार्य आरंभ किया गया है। परिधानों पर कढ़ाई के लिए डिजाइनिंग का कार्य उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार से राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित युवा कलाकार गोपाल हाब्बी द्वारा पद्मश्री विद्यानंद सरैक व जोगेंद्र हाब्बी के मार्गदर्शन में किया गया।
गोपाल हाब्बी द्वारा परिधानों पर बनाई जाने वाली आकृतियों के मास्टर डिजाइन तैयार करके सांस्कृतिक दल के कलाकारों को प्रशिक्षण प्रदान कर उनसे पारंपरिक परिधानों पर कढ़ाई का कार्य करवाया जा रहा है। हाब्बी ने कहा कि पारंपरिक परिधानों के माध्यम् से भी सिरमौर की संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो इसलिए परिधानों पर सिरमौर जिला में विशेष पहचान रखने वाले डांगरा, ठोडा नृत्य, रिहाल्टी, देव पालकी, देव शिरगुल व देव परशुराम की मंदिर स्थलियों के चित्र आदि की आकृतियां को पारंपरिक तरीके से हाथ से कढ़ाई करके उकेरा जा रहा है।
इस कार्य को आरंभ करने से पूर्व जब हाब्बी ने पद्मश्री विद्यानंद सरैक व संस्कृति के कई जानकारों व विद्वानों से भी चर्चा की तो सभी ने उन्हें प्रोत्साहित किया और कहा कि यह कार्य अति आवश्यक है और इसे आपको जल्दी ही आरंभ करना चाहिए। हाब्बी ने बताया कि परिधानों के कुछ सेट तैयार हो जाने के बाद जल्द ही कला केंद्र में विद्वानों, कलाकारों व संस्कृति के जानकारों की एक गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा और तैयार किए गए परिधानों के बारे में उनकी क्या राय है और इसमें सुधार की और अधिक कितनी गुंजाइश है। इस बारे में उनसे जानकारी प्राप्त की जाएगी तथा सिरमौर जिला के पारंपरिक परिधानों की मौलिकता को बरकरार रखते हुए और अधिक आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाएगा जिससे सिरमौर की समृद्ध संस्कृति को परिधानों के माध्यम से भी नई पहचान मिलेगी।