सोलन: एसोसिएशन ऑफ पेट्रोलियम जियोलॉजिस्ट्स (APG), देहरादून द्वारा आयोजित तीन दिवसीय भूवैज्ञानिक फील्ड भ्रमण के तहत ONGC और क्रेन के 14 भूवैज्ञानिकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने कसौली स्थित टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम (TFM) का दौरा किया। यह भ्रमण प्रसिद्ध भूविज्ञानी डॉ. रितेश आर्य के मार्गदर्शन में हुआ।

इस फील्ड विजिट का उद्देश्य सुभाथू, डगशाई और कसौली संरचनाओं सहित टर्शियरी श्रृंखलाओं तथा उनके अधःस्तर व अधिस्थित भूपटल के संबंधों का अध्ययन करना था, ताकि इस क्षेत्र के पालयोपर्यावरणीय और विवर्तनिक इतिहास को समझा जा सके। कार्यक्रम ने इस कम अन्वेषित क्षेत्र में जीवाश्मों की पालयोपर्यावरण व्याख्या, संरक्षण और भू-धरोहर जागरूकता के महत्व को रेखांकित किया।
डॉ. आर्य ने भूवैज्ञानिकों को कसौली, डगशाई और सुभाथू की जीवाश्म-समृद्ध परतों का अवलोकन कराया और बताया कि ये परतें हिमालय के विकास और वैश्विक पालेओक्लाइमेटिक परिवर्तनों को समझने में कितनी सहायक हैं। 10 जून को टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम में ONGC प्रतिनिधिमंडल के सभी 14 सदस्यों के साथ एक इंटरैक्टिव मीटिंग आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता जिला पर्यटन अधिकारी श्रीमती पद्मा ने की। उन्होंने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया।
डॉ. आर्य ने टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम को हिमाचल प्रदेश और सोलन जिले की आधिकारिक पर्यटन स्थलों की सूची में शामिल करने के लिए श्रीमती पद्मा का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह मान्यता वैज्ञानिक धरोहर और जनसंपर्क के बीच की खाई को पाटने में मदद करेगी। उन्होंने इन स्थलों के स्थल-परिरक्षण और जनजागरूकता पर विशेष बल दिया।
श्रीमती पद्मा ने डॉ. आर्य के प्रयासों की सराहना की, और कहा कि इनके प्रयास वैज्ञानिक अनुसंधान और सतत पर्यटन, दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि APG प्रतिनिधियों के अनुभवों को सुनकर वह अत्यंत प्रेरित हुई हैं और क्षेत्र में भू-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने यह भी कहा कि “जियो-वॉक” जैसे कार्यक्रम नियमित रूप से आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि जनता को राज्य की समृद्ध भूवैज्ञानिक धरोहर से जोड़ा जा सके और एक जिम्मेदार पर्यटन प्रणाली विकसित की जा सके।
प्रीतेश प्यासी, फील्ड ट्रिप संयोजक और APG प्रतिनिधि ने कहा कि यह दौरा जानकारी से भरपूर और क्षेत्र की भू-पर्यटन क्षमता को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने कहा कि कसौली और आसपास के क्षेत्रों में जीवाश्मों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे न केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि इन वैज्ञानिक निधियों की रक्षा भी होगी।
उन्होंने डॉ. आर्य द्वारा जगजीतनगर में निजी भूमि पर संरक्षित की गई 2 करोड़ वर्ष पुरानी जीवाश्म वृक्ष की वैश्विक भूवैज्ञानिक समुदाय के लिए एक अनुकरणीय पहल के रूप में प्रशंसा की। यह यात्रा कसौली की भू-धरोहर क्षमता को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और टेथिस फॉसिल म्यूज़ियम को अनुसंधान, शिक्षा और भू-पर्यटन के एक जीवंत केंद्र में बदलने में डॉ. रितेश आर्य के अग्रणी कार्य को सम्मानित करती है।