सोलन: डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के सब्जी विज्ञान विभाग द्वारा विकसित दो सब्जियों की किस्मों को राष्ट्रीय स्तर पर उनके लगातार प्रदर्शन के लिए शीर्ष प्रदर्शन करने वाली किस्मों के रूप में मान्यता दी गई है। शीतोष्ण गाजर की किस्म ‘सोलन श्रेष्ठ’ और फ्रेंच बीन किस्म ‘लक्ष्मी’ को हाल ही में नई दिल्ली में केंद्रीय किस्म रिलीज समिति (सी.वी.आर.सी.) द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी किया गया।
इन किस्मों का प्रदर्शन संबंधित जानकारी सब्जी फसलों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी वीसी) के परियोजना समन्वयक डॉ. राजेश कुमार द्वारा राष्ट्रीय विमोचन कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई। लक्ष्मी और सोलन श्रेष्ठ दोनों को कई क्षेत्रों में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रशंसा मिली।
लक्ष्मी फ्रेंच बीन किस्म को ज़ोन I (जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड) और ज़ोन IV (पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड) में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है, जबकि सोलन श्रेष्ठ ज़ोन IV और पंजाब और बिहार के कुछ हिस्सों के लिए उपयुक्त है। इन किस्मों को विश्वविद्यालय द्वारा क्रमशः 1992 और 2016 में विकसित किया गया था, और राष्ट्रीय रिलीज के लिए अनुमोदित होने से पहले 2017 और 2019 तक सब्जी फसलों पर ए.आई.सी.आर.पी. के तहत परीक्षण किया गया था।
ए.आई.सी.आर.पी. (सब्जी फसल) के सोलन केंद्र में प्रजनक और प्रधान अन्वेषक डॉ. रमेश कुमार भारद्वाज ने बताया कि दोनों किस्मों ने परीक्षण के तीन वर्षों में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया। उनके परिणामों को वाराणसी और श्रीनगर में आयोजित एआईसीआरपी की 39वीं और 41वीं वार्षिक समूह बैठकों में मान्यता दी गई। वैज्ञानिक डॉ. संदीप कंसल, डॉ. डी.के. मेहता, डॉ. कुलदीप ठाकुर और डॉ. राकेश ने इन किस्मों के बीजों के रखरखाव और बड़े पैमाने पर प्रजनन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अनुसंधान निदेशक, डॉ. संजीव चौहान ने सोलन श्रेष्ठ के गुणों पर प्रकाश डालते हुये बताया कि यह लंबी, आकर्षक, नारंगी रंग की स्व-कोर वाली बेलनाकार जड़ों के लिए जानी जाती है। यह जल्दी पक जाती है, बिना बालों वाली जड़ों और मुलायम होता है और β-कैरोटीन से भरपूर होती है। सोलन श्रेष्ठ आम बीमारियों और कीटों के प्रति प्रतिरोधी है और इसकी जड़ का औसत वजन 255-265 ग्राम है, जिससे 225-275 क्विंटल/हेक्टेयर विपणन योग्य उपज प्राप्त होती है। इसी प्रकार, फ्रेंच बीन किस्म, लक्ष्मी का कर नोड 2-3 लंबी, आकर्षक, बिना डोरी वाली हरी फलियां पैदा करती है, जो 65-70 दिनों में पक जाती है। यह 150-200 क्विंटल/हेक्टेयर की उच्च विपणन योग्य उपज प्रदान करता है, जिसमें परिपक्व बीज हल्के पीले रंग की पट्टियों के साथ सफेद होते हैं।
कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने वैज्ञानिकों के योगदान की सराहना करते हुए कहा कि ए.आई.सी.आर.पी. के सोलन केंद्र ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन किस्मों की सफलता, विशेष रूप से उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और लागत प्रभावशीलता के मामले में, छोटे और सीमांत किसानों को बहुत लाभ पहुंचाएगी। दोनों किस्में खुले में परागित होती हैं, जिससे वे महंगे संकर बीजों की तुलना में किसानों के लिए अधिक सुलभ हो जाती हैं। प्रोफेसर चंदेल ने विश्वास व्यक्त किया कि ये खुले परागण वाली किस्में देश भर के किसानों की आजीविका में योगदान देंगी, खासकर उन क्षेत्रों में जहां इन क़िस्मों ने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं। प्रोफेसर चंदेल ने आगे कहा कि ये किस्में हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्यों में कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी जहां वे अत्यधिक उत्पादक साबित हुई हैं।