शिमला: हिमाचल में सवर्णों को आरक्षण के मुद्दे पर देवभूमि क्षत्रिय संगठन को एक नई पहचान दिलाई | यह एक ऐसा मुद्दा बना जिसने सवर्ण समुदाय को बेहद कम समय में एक छत के नीचे लाने में कामयाबी दिलवाई | लेकिन कुछ ही समय में आंदोलन की रूप रेखा बदलती नजर आने लगी | हाल ही में हुई पुलिस के साथ झड़पें और मिडिया को दिए बयानों में भाषाई शालीनता कहीं खो सी गई और तीखे तेवर दिखाई दिए | शिमला पहुंचते-पहुंचते तीखे तेवरों से चुने हुए प्रतिनिधियों को ललकारना और नई पार्टी का ऐलान करना किसी को रास नहीं आ रहा | सवर्ण आंदोलन को एक दिशा देने वाले देवभूमि क्षत्रिय संगठन के प्रमुख ने आज जब शिमला में प्रदर्शन के दौेरान नई पार्टी बनाने की घोषणा की तो उनके कई साथी नाराज हो गए और राजनीति नही चलेगी, नहीं चलेगी के नारे लगाने लगे |
शिमला में देवभूमि पार्टी बनाने का ऐलान करने के बाद और इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी के सभी 68 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से सोशल मिडिया पर प्रतिक्रियाओं का आना थम ही नहीं रहा है | सोशल मिडिया पर देवभूमि क्षत्रिय संगठन के इस निर्णय से लोग सहमत नजर नहीं आ रहे | देवभूमि क्षत्रिय संगठन प्रमुख द्वारा विधानसभा चुनाव लड़ने और मौजूदा सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने वाले बयान से भी लोग नाराज नजर आ रहे हैं। उनके इस बयान पर कार्यकर्ता ना केवल शिमला में भड़के बल्कि सोशल मिडिया के माध्यम से भी लोगो ने तीखी प्रतिक्रया देनी शुरू कर दी | ललित चौहान ने लिखा की ” बहुत बड़ा गलत कदम, राजपूत समाज को अगर आगे ले जाना है तो बिना राजनीति के आगे बढ़ना होगा क्या अल्पसंख्यक लोगों ने चुनाव लड़ा है? ये गलत बात होगी कि चुनाव लड़ा जाएगा, मैं इससे सहमत नही हूं” |
शर्मा रविंद्र ने लिखा “दिखा दिया अपना असली रूप” | एक अन्य कार्यकर्ता ने लिखा कि हम संगठन के प्रदर्शन में आए हैं, न कि कोई पार्टी बनाने। अधिकतर प्रतिक्रयाओं में लोगों की चुनावी राजनीति में कोई रुची नहीं है और ना ही कोई पार्टी बनाने के पक्ष में नजर आ रहा है | एक अन्य व्यक्ति ने लिखा “यह तो होना ही था, अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस तरह की चाल चली” | सोशल मिडिया पर अगर नजर डाली जाए तो ऐसी हजारों प्रतिक्रयाएं नजर आएंगी | अब ऐसा प्रतीत होता है कि एक बयान ने सवर्ण आयोग के पूरे आंदोलन की हवा निकाल कर रखा दी है |