नाहन : सिरमौर, शिमला, चौपाल तथा उत्तराखंड के जौनसार के कई गांव में महाभारत काल से बिशु मेले को मनाए जाने की परंपरा आज भी कायम है। बैसाख संक्रांति से जिला के गिरिपार क्षेत्र में विभिन्न जगह पर बिशु मेलों का आयोजन हर वर्ष किया जाता है और यह सिलसिला अप्रैल से मई तक चलता रहता है। यह बिशु मेले बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है।
मंदिर के पुजारी गीता राम शर्मा ने बताया गांव नैनीधार स्थित शिरगुल (शिव) मंदिर परिसर में सैकड़ों सालों से पारंपरिक बिशु मेले का आयोजन किया जाता है और वाद्य यंत्र सहित कुलदेवता के मंदिर से शिव मंदिर परिसर तक पारंपरिक बिशु जलसा निकाला जाता है।
इस दौरान देवता का आह्वान व पारंपरिक पहाड़ी नृत्य कर खूब-खूब मनोरंजन करते है। बिशु मेले के दौर में समूचे क्षेत्र के लोग रिश्तेदारी व आपसी भाईचारे को बढ़ावा देता है, सदियों से चली चली आ रही इस परम्परा के कारण इस क्षेत्र व यहां के लोगों की देश भर में अलग पहचान है। उन्होंने बताया कि पहले 12 गांव के लोग बिशु मेला मनाने यहीं आया करते थे। पर अब देवते की आज्ञा से गिरिपार के अलग-अलग गांवों में बिशु मेला अलग-अलग तारीखों में आयोजित किए जाते हैं।
उन्होंने बताया कि पूरे क्षेत्र में यह सबसे पहला बिशु मेला है, तथा मेले में समस्त लादी क्षेत्र से सैंकड़ो की संख्या में लोग पहुचते है। बिशु के दौर में रिश्तेदारों की खूब मेहमाननवाजी होती है। बिशु के दौरान बाहर से कई व्यापारी पहाड़ों में पहुँचते है, जिस के लिए उन्हें स्थानीय कमेटी से अनुमति लेनी होती है तथा कमेटी द्वारा तय किया गया चंदा चुकाने के उपरांत ही व्यापारी मेले में दुकान खोल सकते है।