सोलन: बदलती जलवायु परिस्थितियों में फलों की उत्पादन तकनीक और प्रबंधन पर केंद्रित दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आज डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में शुरू हुआ। कार्यक्रम में उत्तर भारत के पांच राज्यों के किसान भाग ले रहे हैं।
उद्घाटन सत्र के दौरान कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने इस बात पर जोर दिया कि बदलती जलवायु परिस्थितियाँ न केवल कृषि के लिए बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं के लिए चुनौतियां पैदा करती हैं। उन्होंने कहा कि कुछ कृषि पद्धतियों के कारण मोनोकल्चर को बढ़ावा मिला है और स्वदेशी बीजों और फसलों के उपयोग में गिरावट आई है, जिससे पर्यावरण और मिट्टी और पानी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि राज्य में जंगल की आग की बढ़ती घटनाओं के कारण पहाड़ों में पहले से ही बढ़ा हुआ तापमान चिंता का विषय है और भविष्य में इससे निपटने के लिए संयुक्त प्रयास करने होंगे। प्रोफेसर चंदेल ने पर्यावरण अनुकूल तकनीकों को अपनाने की वकालत की, जो मिट्टी, पानी और पर्यावरण का संरक्षण करते हुए छोटे और मध्यम किसानों के लिए कृषि को अधिक लाभदायक बना सकती हैं।
पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता राकेश जैन ने देश के कई क्षेत्रों में वनों की कटाई और अनियोजित विकास के हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने केप टाउन, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों का उदाहरण देते हुए वनीकरण और प्रभावी जल संरक्षण मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया। जैन ने पॉलिथीन को पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों से बदलने की तत्काल आवश्यकता पर भी जोर दिया।
तकनीकी सत्रों में, डॉ. जितेंद्र चौहान ने फलों के पेड़ों के लिए नर्सरी प्रथाओं पर चर्चा की, जबकि डॉ. प्रशांत ने वनीकरण और पर्यावरण संरक्षण पर विषय को कवर किया। डॉ. राजेश कौशल ने घरेलू खाद बनाने और डॉ. राजेश शारदा ने प्रतिभागियों को सिंचाई तकनीकों के बारे में जानकारी दी। इसके अतिरिक्त, डॉ. राकेश शर्मा ने खाद्य उत्पाद तैयार करने पर सलाह दी। कार्यक्रम में डॉ. विपिन गुलेरिया के साथ विभिन्न पौधों पर चर्चा हुई।
भविष्य की रणनीतियों पर इंटरैक्टिव सत्र भी आयोजित किया गया। साथ-साथ उच्च घनत्व वाले वृक्षारोपण और नर्सरी का क्षेत्रीय दौरा भी किया गया। दो दिवसीय कार्यक्रम का समापन परिसर में वृक्षारोपण अभियान के साथ होगा। इस कार्यक्रम में पदमश्री विजेता कंवल सिंह चौहान सहित विभिन्न संस्थानों के प्रख्यात वक्ता, विश्वविद्यालय के वैधानिक अधिकारी और विभिन्न विभागों के वैज्ञानिक भी शामिल हुए।