रिकांगपिओ (किन्नौर): किन्नौर की ठंडी मरुस्थलीय हंगरंग घाटी के मल्लिंग क्षेत्र में, समुद्र तल से 3,556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक प्रदर्शन बगीचे में सोमवार को ‘एप्पल डे 2.0’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जनजातीय क्षेत्र के किसानों को उच्च घनत्व सेब रोपण (High-Density Planting) और प्राकृतिक खेती की उन उन्नत तकनीकों से परिचित कराना था, जो यहां की शुष्क जलवायु के लिए विशेष रूप से विकसित की गई हैं।
यह आयोजन डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) किन्नौर और क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान केंद्र, शार्बो द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इसमें 100 से अधिक सेब उत्पादकों, अधिकारियों और छात्रों ने हिस्सा लिया।

सफलता की कहानी बयां कर रहा मॉडल बगीचा
यह कार्यक्रम जिस मॉडल बगीचे में आयोजित किया गया, उसे 2021 में नौणी विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित किया गया था। यहां सुपर चीफ और गाला जैसी प्रीमियम सेब की दस किस्में लगाई गई हैं, जो अब यह साबित कर रही हैं कि ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में भी सघन बागवानी सफलतापूर्वक की जा सकती है।
विशेषज्ञों ने दिए टिप्स, किसानों ने साझा किए अनुभव
कार्यक्रम में नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों को प्रकृति-आधारित समाधान, बहु-फसली प्रणाली और फसल विविधीकरण अपनाने पर जोर दिया। फल वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार और KVK किन्नौर के प्रमुख डॉ. प्रमोद शर्मा ने कहा कि सीडलिंग रूटस्टॉक पर सघन बागवानी और प्राकृतिक खेती को अपनाना ही टिकाऊ कृषि का भविष्य है।
इस अवसर पर आत्मा परियोजना के अधिकारियों ने बताया कि किन्नौर जिले में 1,000 से अधिक किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं, जिनमें से 99 किसान पूह खंड से हैं। शलकर और चांगो के प्रगतिशील किसानों, केसांग तोबदेन और कृष्ण चंद, ने भी प्राकृतिक खेती से मिली अपनी सफलता की कहानियां साझा कर अन्य किसानों को प्रेरित किया।
कार्यक्रम में किसानों से जलवायु-अनुकूल और पानी की बचत करने वाली बागवानी तकनीकों को अपनाने का आह्वान किया गया, ताकि इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र में सतत विकास सुनिश्चित हो सके।