मुंबई। एक 3 साल के आदिवासी बच्चे की नक्सली होने के आरोप में अंगुलियां काट ली जाती है। एक 28 साल की आदिवासी महिला की माओवादी विद्रोही होने के झूठे आरोप में टांग तोड़ दी जाती है। इसके बाद उस महिला को बगैर इलाज के छोड़ दिया जाता है। इन दिनों बच्चों को सशस्त्र सैनिकों के रुप में भर्ती को दौर चल रहा है। इन दिनों पुलिस के कई वाहन बगैर नम्बर प्लेट के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह हालात हैं छत्तीसगढ़ में दक्षिणी बस्तर के नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा के। वहां की आवोहवा में अराजकता की छाया और अत्याचारों के मंजर से जुड़े ऐसे तथ्यों और घटनाओं का खुलासा प्रेस क्लब, मुंबई में आयोजित जनसुनवाई में किया गया।
डाक्टर विनायक सेन समिति द्वारा आयोजित जनसुनवाई में जोर दिया कि मीडिया और मानव अधिकार संगठनों को ऐसे इलाकों का दौरा करना चाहिए और जो भी सच्चाई है उसे सामने लाना चाहिए। इससे ग्रामीणों पर हो रहे दमन के विरोध को आवाज मिल सकेगी। इस दौरान पत्रकार, फिल्ममेकर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक पेनल ने राज्य द्वारा संचालित हिंसा से संबंधित कई फोटो और वीडियो दस्तावेज भी दिखाए। इनमें सलवा जुडुम द्वारा कानून को अपने हाथों में लिए जाने और उसके विरोध से पनपीं कुछेक कहानियों की झलक मिलती हैं। चर्चा में यह भी स्पष्ट किया गया कि नक्सलवाद के नाम पर सरकार जो गतिविधियों चला रही हैं उससे आदिवासी समुदाय अपनेआप में किस तरीके से उलझ चुका है और छत्तीसगढ़ में गृह युद्ध जैसी स्थितियां बन पड़ी हैं। सत्ता के समर्थन से गांवों के गांवों बसाने की बजाय उजाड़े जा रहे हैं। कुल मिलाकर यह अघोषित इमरजेंसी है।
इस मौके पर स्वतंत्र पत्रकार प्रियंका बोरपुजारी ने सेमसेट्टी गांव की चार महिलाओं के साथ हुए उस जुल्म पर भी रौशनी डाली- जिनके साथ 2008 को सलवा जुडुम से ने बलात्कार किया था। इसके बाद पुलिस ने भी धमकी दी थी कि अगर शिकायत को वापस नहीं लिया गया तो जो होगा वो बहुत खराब होगा। प्रियंका ने बताया कि उन्होंने दंतेवाड़ा में कुछ समय बिताया है, वहां के आदिवासी समाज में बलात्कार जैसी अवधारणा ही नहीं रही है, ऐसे सुरक्षित समाज में सलवा जुडूम द्वारा किये जा रहे जघन्य अपराधों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। यहां कई रूचिकाएं हैं मगर अब सवाल यह है कि कार्रवाई करे भी तो कौन ?
इस दौरान सोडी शम्बो की दयनीय हालत पर भी नजर डाली गई। यह आदिवासी महिला बीते साल विशेष पुलिस अधिकारी द्वारा की गई हत्याओं की खास गवाह और पीड़िता है। सोडी शम्बो के साथ पुलिसिया दबाव और प्रताड़ना की कहानी भी जुड़ी हुई है।

मुंबई। एक 3 साल के आदिवासी बच्चे की नक्सली होने के आरोप में अंगुलियां काट ली जाती है। एक 28 साल की आदिवासी महिला की माओवादी विद्रोही होने के झूठे आरोप में टांग तोड़ दी जाती है। इसके बाद उस महिला को बगैर इलाज के छोड़ दिया जाता है। इन दिनों बच्चों को सशस्त्र सैनिकों के रुप में भर्ती को दौर चल रहा है। इन दिनों पुलिस के कई वाहन बगैर नम्बर प्लेट के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। यह हालात हैं छत्तीसगढ़ में दक्षिणी बस्तर के नक्सल प्रभावित जिले दंतेवाड़ा के। वहां की आवोहवा में अराजकता की छाया और अत्याचारों के मंजर से जुड़े ऐसे तथ्यों और घटनाओं का खुलासा प्रेस क्लब, मुंबई में आयोजित जनसुनवाई में किया गया।

डाक्टर विनायक सेन समिति द्वारा आयोजित जनसुनवाई में जोर दिया कि मीडिया और मानव अधिकार संगठनों को ऐसे इलाकों का दौरा करना चाहिए और जो भी सच्चाई है उसे सामने लाना चाहिए। इससे ग्रामीणों पर हो रहे दमन के विरोध को आवाज मिल सकेगी। इस दौरान पत्रकार, फिल्ममेकर और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक पेनल ने राज्य द्वारा संचालित हिंसा से संबंधित कई फोटो और वीडियो दस्तावेज भी दिखाए। इनमें सलवा जुडुम द्वारा कानून को अपने हाथों में लिए जाने और उसके विरोध से पनपीं कुछेक कहानियों की झलक मिलती हैं। चर्चा में यह भी स्पष्ट किया गया कि नक्सलवाद के नाम पर सरकार जो गतिविधियों चला रही हैं उससे आदिवासी समुदाय अपनेआप में किस तरीके से उलझ चुका है और छत्तीसगढ़ में गृह युद्ध जैसी स्थितियां बन पड़ी हैं। सत्ता के समर्थन से गांवों के गांवों बसाने की बजाय उजाड़े जा रहे हैं। कुल मिलाकर यह अघोषित इमरजेंसी है।

इस मौके पर स्वतंत्र पत्रकार प्रियंका बोरपुजारी ने सेमसेट्टी गांव की चार महिलाओं के साथ हुए उस जुल्म पर भी रौशनी डाली- जिनके साथ 2008 को सलवा जुडुम से ने बलात्कार किया था। इसके बाद पुलिस ने भी धमकी दी थी कि अगर शिकायत को वापस नहीं लिया गया तो जो होगा वो बहुत खराब होगा। प्रियंका ने बताया कि उन्होंने दंतेवाड़ा में कुछ समय बिताया है, वहां के आदिवासी समाज में बलात्कार जैसी अवधारणा ही नहीं रही है, ऐसे सुरक्षित समाज में सलवा जुडूम द्वारा किये जा रहे जघन्य अपराधों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। यहां कई रूचिकाएं हैं मगर अब सवाल यह है कि कार्रवाई करे भी तो कौन ? इस दौरान सोडी शम्बो की दयनीय हालत पर भी नजर डाली गई। यह आदिवासी महिला बीते साल विशेष पुलिस अधिकारी द्वारा की गई हत्याओं की खास गवाह और पीड़िता है। सोडी शम्बो के साथ पुलिसिया दबाव और प्रताड़ना की कहानी भी जुड़ी हुई है।

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2 Comments

  1. Arvind Tripathi on

    ho sakta hai thoda bahut sach ho lekin Naxaliyo dwara kiye jaanewalo atayacharo ko kaun batayega – dikhayega jaha vote dene walo ka sir kaatkar gaon-gaon me ghumaya jata hai

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