शिरीष खरे

बाम्बे हाइकोर्ट सतीश शेट्टी हत्याकाण्ड की जांच चाहता है

मुंबई:  बाम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि वह सूचना के अधिकार कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की पुणे में हुई निशृंस हत्या की जांच करे। उसने सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं पर हिंसा की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी को लेकर चिंता जाहिर की।
बोम्बे हाई कोर्ट ने अपने स्वतः संज्ञान (Suo Moto) आदेश में महाराष्ट्र सरकार और उसकी राज्य पुलिस को सतीश शेट्टी की हत्या करने वाले अज्ञात हमलावरों को शीघ्रातिशीघ पकड़ने के लिए कहा है। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता पर घातक हमले का यह कोई अकेला मामला नहीं है, सतीश शेट्टी की हत्या से एक सप्ताह पहले ही नयना कथपलिया पर भी जानलेवा हमला हुआ और नीरा पुनी को खुलेआम धमकाया गया।
डिवीजन बेंच जस्टिस एफ आई रेबेल्लो और जस्टिस जे एस भाटिया ने कहा कि राज्य का गृह विभाग इस हत्याकाण्ड की जांच करे। इसी के साथ पिछले दिनों मुंबई के कार्यकर्ता नयना कथपलिया पर हुए हमले की रिर्पोट भी प्रस्तुत करे। बोम्बे हाइकोर्ट के इन जजों ने यह रिपोर्ट कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मांगी है, जिसे एक सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करना जरूरी है।
बोम्बे हाइकोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने ऐलान किया है कि प्रदेश स्तर पर भूमाफियाओ के खिलाफ धरपकड़ तेज की जाएगी। गृहमंत्री आर आर पाटिल के मुताबिक  ‘‘ऐसी घटनाओं के पीछे अगर भूमाफियाओं का हाथ पाया गया तो सरकार उन्हें किसी भी हालत में माफ करने वाली नहीं है।’’
सामाजिक कार्यकर्ताओं को धमकाने और उन पर हो रहे हमलों के खिलाफ ‘मित्रा’ नाम से खड़े हुए आंदोलन के संयोजक सुमैरा ने कहा कि ‘‘कार्यकताओं पर लक्ष्य साधकर, उनके ऊपर हमले करने का प्रवृत्ति इन दिनों जोर पकड़ती जा रही है। सरकार को चाहिए कि वह हमले रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए।’’ इस आंदोलन की तरफ से गृह विभाग को एक सूचीपत्र भी भेजी जा चुकी है जिसमें कुछ सालों के भीतर सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों का विवरण दर्ज है।
सतीश शेट्टी की हत्या के बाद सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं की ओर से कई तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कुछ कार्यकर्ताओं को यह लगता है कि इस किस्म की वारदातों को अंजाम देना भूमाफियाओं की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। कुछ कार्यकर्ताओं के मुताबिक इस किस्म की वारदातों से भूमाफियाओं की छटपटाहट का पता चलता है जो सूचना के अधिकार के बढ़ते असर का साफ संकेत है। इसलिए अब अधिक से अधिक लोगों को सूचना के अधिकार आंदोलन में शामिल होना चाहिए। सजग नागरिक मंच के अध्यक्ष विवेक वेलेंकर मानते हैं कि ‘‘एक कार्यकर्ता को धमकाना या उसे मार डालना बहुत आसान है, मगर जनता को धमकाना या उसे मार डालना बहुत मुश्किल होगा। इस तरह के बढ़ते हमलों का एक मतलब यह भी है कि सूचना के अधिकार कार्यकर्ता अपने काम को बाखूबी निभा रहे हैं। इसे कानूनी ढ़ंग से मुकाबला करके और असरदार बनाया जा सकता है। हम लोग किसी भी कीमत पर अपने मनोबल को खो नहीं सकते।’‘ नागरिक चेतना मंच के अध्यक्ष रिटायर्ट मेजर जनरल एस सी एन जाथर अपनी बात जोड़ते हैं ‘‘जबकि सुरक्षा के लिए संपर्क साधा जा रहा है, तब तो पुलिस को ऐसे मामले गंभीरता से लेना चाहिए। वह चाहे तो जांच करके हकीकत सामने ला सकती है। वैसे मुझे अभी तक किसी ने कोई धमकी नहीं दी है, पर बहुत से लोग हैं जो दोस्त के नाते सलाह देते हैं कि ऐसे मामलों से दूर रहो तो अच्छा है।’’ सामामजिक कार्यकर्ता विजय कुंभार बताते हैं ‘‘किसी कार्यकर्ता की हत्या का यह कोई पहला मामला नहीं है। राजनेताओं और नौकरशाही के बीच की सांठगांठ के चलते कार्यकर्ताओं को पहले से ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।’’ बहुत से कार्यकताओं का यह मत है कि शीघ्रातिशीघ्र एक संरक्षण अधिनियम बनाया जाए और उसे तत्काल लागू किया जाए।
सतीश शेट्टी ने दस हजार से भी ज्यादा ऐसे भ्रष्ट सत्ताधारियों के नाम खोजे और उनके खिलाफ मामले दर्ज किए- जिनके तार तालेगांव से लेकर लोनावाला तक के कई बड़े भूमि घोटाले से जुड़े हैं। उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे, जो कि देश का पहला एक्सप्रेस हाइवे है, इसके आसपास की जमीनों के भूमि घोटालों से भी पर्दा उठाया था। सतीश शेट्टी ने ऐसे कई जनहित याचिकाएं दायर करने में अहम भूमिका निभायी, जिनसे उजागर होता था कि भूमाफिया किस तरह से खेतीलायक जमीनों को हड़पने की रणनीति बनाते हैं। मुख्यमंत्री के नाम पर भेजी जाने वाली इन जनहित याचिकाओं से जाहिर होता था कि महाराष्ट्र में जो जमीन केवल किसानों को ही बेची जा सकती है, उसे भी भूमाफिया किस तरह से कब्जे में लेना चाहते हैं। सतीश शेट्टी ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके भूमि घोटालों के अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कई अवैध ढ़ाचों से संबंधित मामलों का भी खुलासा करके प्रसिद्धि पायी थी। वह अक्सर लोगों को बताते थे कि सूचना के अधिकार को कैसे एक अधिकार के रुप में अपनाकर न्याय पाया जा सकता है। वह इस मामले में कई लोगों के मागदर्शक भी रहे हैं।

मुंबई। बाम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि वह सूचना के अधिकार कार्यकर्ता सतीश शेट्टी की पुणे में हुई निशृंस हत्या की जांच करे। उसने सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं पर हिंसा की घटनाओं में हो रही बढ़ोतरी को लेकर चिंता जाहिर की।
बोम्बे हाई कोर्ट ने अपने स्वतः संज्ञान (Suo Moto) आदेश में महाराष्ट्र सरकार और उसकी राज्य पुलिस को सतीश शेट्टी की हत्या करने वाले अज्ञात हमलावरों को शीघ्रातिशीघ पकड़ने के लिए कहा है। सूचना के अधिकार कार्यकर्ता पर घातक हमले का यह कोई अकेला मामला नहीं है, सतीश शेट्टी की हत्या से एक सप्ताह पहले ही नयना कथपलिया पर भी जानलेवा हमला हुआ और नीरा पुनी को खुलेआम धमकाया गया। डिवीजन बेंच जस्टिस एफ आई रेबेल्लो और जस्टिस जे एस भाटिया ने कहा कि राज्य का गृह विभाग इस हत्याकाण्ड की जांच करे। इसी के साथ पिछले दिनों मुंबई के कार्यकर्ता नयना कथपलिया पर हुए हमले की रिर्पोट भी प्रस्तुत करे। बोम्बे हाइकोर्ट के इन जजों ने यह रिपोर्ट कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए मांगी है, जिसे एक सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करना जरूरी है।बोम्बे हाइकोर्ट के आदेश के बाद महाराष्ट्र सरकार ने ऐलान किया है कि प्रदेश स्तर पर भूमाफियाओ के खिलाफ धरपकड़ तेज की जाएगी। गृहमंत्री आर आर पाटिल के मुताबिक  ‘‘ऐसी घटनाओं के पीछे अगर भूमाफियाओं का हाथ पाया गया तो सरकार उन्हें किसी भी हालत में माफ करने वाली नहीं है।’’

सामाजिक कार्यकर्ताओं को धमकाने और उन पर हो रहे हमलों के खिलाफ ‘मित्रा’ नाम से खड़े हुए आंदोलन के संयोजक सुमैरा ने कहा कि ‘‘कार्यकताओं पर लक्ष्य साधकर, उनके ऊपर हमले करने का प्रवृत्ति इन दिनों जोर पकड़ती जा रही है। सरकार को चाहिए कि वह हमले रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए।’’ इस आंदोलन की तरफ से गृह विभाग को एक सूचीपत्र भी भेजी जा चुकी है जिसमें कुछ सालों के भीतर सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों का विवरण दर्ज है।
सतीश शेट्टी की हत्या के बाद सूचना के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ताओं की ओर से कई तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कुछ कार्यकर्ताओं को यह लगता है कि इस किस्म की वारदातों को अंजाम देना भूमाफियाओं की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। कुछ कार्यकर्ताओं के मुताबिक इस किस्म की वारदातों से भूमाफियाओं की छटपटाहट का पता चलता है जो सूचना के अधिकार के बढ़ते असर का साफ संकेत है। इसलिए अब अधिक से अधिक लोगों को सूचना के अधिकार आंदोलन में शामिल होना चाहिए। सजग नागरिक मंच के अध्यक्ष विवेक वेलेंकर मानते हैं कि ‘‘एक कार्यकर्ता को धमकाना या उसे मार डालना बहुत आसान है, मगर जनता को धमकाना या उसे मार डालना बहुत मुश्किल होगा।

इस तरह के बढ़ते हमलों का एक मतलब यह भी है कि सूचना के अधिकार कार्यकर्ता अपने काम को बाखूबी निभा रहे हैं। इसे कानूनी ढ़ंग से मुकाबला करके और असरदार बनाया जा सकता है। हम लोग किसी भी कीमत पर अपने मनोबल को खो नहीं सकते।’‘ नागरिक चेतना मंच के अध्यक्ष रिटायर्ट मेजर जनरल एस सी एन जाथर अपनी बात जोड़ते हैं ‘‘जबकि सुरक्षा के लिए संपर्क साधा जा रहा है, तब तो पुलिस को ऐसे मामले गंभीरता से लेना चाहिए। वह चाहे तो जांच करके हकीकत सामने ला सकती है। वैसे मुझे अभी तक किसी ने कोई धमकी नहीं दी है, पर बहुत से लोग हैं जो दोस्त के नाते सलाह देते हैं कि ऐसे मामलों से दूर रहो तो अच्छा है।’’ सामामजिक कार्यकर्ता विजय कुंभार बताते हैं ‘‘किसी कार्यकर्ता की हत्या का यह कोई पहला मामला नहीं है। राजनेताओं और नौकरशाही के बीच की सांठगांठ के चलते कार्यकर्ताओं को पहले से ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है।’’ बहुत से कार्यकताओं का यह मत है कि शीघ्रातिशीघ्र एक संरक्षण अधिनियम बनाया जाए और उसे तत्काल लागू किया जाए।

सतीश शेट्टी ने दस हजार से भी ज्यादा ऐसे भ्रष्ट सत्ताधारियों के नाम खोजे और उनके खिलाफ मामले दर्ज किए- जिनके तार तालेगांव से लेकर लोनावाला तक के कई बड़े भूमि घोटाले से जुड़े हैं। उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस हाइवे, जो कि देश का पहला एक्सप्रेस हाइवे है, इसके आसपास की जमीनों के भूमि घोटालों से भी पर्दा उठाया था। सतीश शेट्टी ने ऐसे कई जनहित याचिकाएं दायर करने में अहम भूमिका निभायी, जिनसे उजागर होता था कि भूमाफिया किस तरह से खेतीलायक जमीनों को हड़पने की रणनीति बनाते हैं। मुख्यमंत्री के नाम पर भेजी जाने वाली इन जनहित याचिकाओं से जाहिर होता था कि महाराष्ट्र में जो जमीन केवल किसानों को ही बेची जा सकती है, उसे भी भूमाफिया किस तरह से कब्जे में लेना चाहते हैं। सतीश शेट्टी ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करके भूमि घोटालों के अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कई अवैध ढ़ाचों से संबंधित मामलों का भी खुलासा करके प्रसिद्धि पायी थी। वह अक्सर लोगों को बताते थे कि सूचना के अधिकार को कैसे एक अधिकार के रुप में अपनाकर न्याय पाया जा सकता है। वह इस मामले में कई लोगों के मागदर्शक भी रहे हैं।

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