दुनिया के सबसे बडे देशों में गिनती रखने वाले भारत देश की सरकार आज आजादी के 60 साल बाद भी कितना लाचार है, यह बात किसी भी देशवासी से छिपी हुई नही है | बात चाहे खाने में मिलावट करने वालों की हो या आटों-टैक्सी वालों की | झोलाछाप डाक्टरों के विरुद्ध सरकार कई सालों से अनेक प्रकार के कानून बनाकर और बार-बार समाचार पत्रों में विज्ञापन देकर इन लोगो पर नुकेल कसने की नाकाम कोशिश कर रही है | नतीजा ढाक के वोही तीन पात | यह लोग आम जनता को गुमराह करते हुए हर बीमारी का शर्तिया इलाज करने के दावे के नाम पर लोगो से रोज हजारों रुपये ऐंठ लेते है | कानून के अभाव में इनके खिलाफ न तो कोई शिकायत होती और न ही इनकी सजा के बारे में कुछ किया जाता है |
कुछ अमीर लोग जो प्राईवेट अस्पतालो में पैसे के जोर पर अपना इलाज करवा देते है | हर एक आम आदमी की पहुंच यहां तक मुमकिन नहीं हो पाती | बडे अस्पताल छोटी सी बीमारी का भी इलाज कराने से पहले हजारों रुपये के तो लैंब टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं | कारण यह कि इसमें से कमीशन का एक मोटा हिस्सा डाक्टरों की जेब में भी आता है | मध्यमवर्गीय और गरीब लोग अपनी बीमारियों का इलाज करवाने के लिए सारा-सारा दिन सरकारी एंव गैर सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाते हुए देखे जा सकते है | अमीर और राजनीति से जुडे रईसों की सेवा करने वाला हमारे समाज का एक बडा भाग आज भी गरीवी की रेखा से निचे जीवन व्यतीत कर रहा है | उन लोगो के पास अपने दुख दर्द को कम करने के लिए सडक छाप डाक्टर या कुछ नीम-हकीम ही एक मात्र विकल्प बचते है | आए दिन ऐसे लोगो के हाथ से न जाने कितने ही लोग बेमौत मारे जाते है |
ऐसे डाँक्टर सिर दर्द से लेकर कैंसर और दिल के रोगों का इलाज अपने पास रखी चन्द गोलियों से ही कर लेते है | यह् छोलाछाप डाँक्टर ऐसी बीमारियों का भी इलाज करने का दावा करते है | जिसका नाम तक इन की सात पुश्तों ने भी कभी नहीं सुना होता | अब कहने को तो यह बेचारे अपमी तहफ से पूरी कोशिश करते है | लेकिन, फिर भी मरीज की मौत हो जाए, तो सारा दोष उनकी किस्मत या भगवान के सिर मढ्ने में एक मिनट की भी देरी नही लगाते |
मरीज की मौत होने पर अपनी गलती मानने की बजाऐ, उसके घर वालो की झूठी तसल्ली देने में भी उनको महारत हासिल है | ऊपर वाले ने इसकी उम्र इतनी लिखी थी, वरना ईलाज में तो कोई कमी नही थी | अब तो मरीज के चेहरे पर लाली भी दिखने लगी थी, चाहे वो ग्लुकोज चढाने की सूजन की बजह से ही आई हो | इस तरह से मरीज के रिश्तेदारो को ढढास बंधाते हुए, जाते हुए अपनी फीस का जीक्र करना भी नही भूलते |
इस प्रकार के झोलाछाप डाँक्टरों को सबसे अधिक परेशानी उस समय है, जब कोई किसी पार्टी में इससे किसी बीमारी के बारे में बात कर ले | क्योंकि इनको न तो उस बीमारी के बारे में कुछ पता होता है और न ही इसके इलाज के बारे में | फिर वहां आए अपने कुछ ग्राहकों के सामने किरकिरी होने का भी खतरा उन्हें सताता हैं | ऐसे मौहोल में यह बडी ही होशियारी से मरीज को कहते है कि आपको इसके किए हमारे क्लीनिक पर आना होगा, क्योंकि पूरी तरह से चैक-अप करने के लिए आपके सभी कपडे उताने होंगे वह यहां तो सभंव नही हो सकता ! मरीज को थोडी सी चतुराई दिखाकर अपने पचास-सौ रुपये बचाने के जुगाड पर डाँक्टर साहब एक मिनट में पानी फेर देते है |
हमारी सरकार हर साल आम नागरिक से टैक्स तो बहुत दिल खोलकर लेती है, लेकिन आम जनता को सेहत से जुडी बुनियादी सुविधाएं भी जुटाने के लिये सरकार कभी पैसों की कमी, कभी डाँक्टरो एव नर्सो की कमी और ऐसे अनेक प्रकार के हजारों रोने जनता को सुना देती है | सरकार के इस निकम्मेपन की वजह से हमारे देश की रीढ की हड्डी कहे जाने वाले लाखों किसान और मजदूर लोग मजबूरी में लाचार होकर मौत के क्रूर हाथो का तमाशा देखने के लिये मजबूर हो जाते है |
लाचार सरकार को जौली अंकल केवल इतना ही संदेश देना चाहते है कि केवल खोखले वादे से कभी कुछ हासिल नही हो पाता | पेड पर लटके आम को देख उसे पाने की चाहत तभी पूरी होती है जब पेड पर चढने का प्रयास किया जाए |