(लेखक- डॉ0 राजेश कुमार व्यास) : एक मोटे अनुमान के अनुसार 20वीं सदी में बाघों की संख्या एक लाख से 97 प्रतिशत घट गई है । भारत की ही बात करें, हमारे यहां वर्ष 1989 में प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत देश में बाघों की संख्या 4 हजार 334 थी, जो 2001-2002 में घटकर 3 हजार 642 हो गई । वर्ष 2006-07 में यह संख्या और घटकर 2 हजार 438तक पहुंच गयी और आज स्थिति यह है कि पूरे देश में मात्र एक हजार 411 बाघ ही बचे हैं ।

बाघों के अवैध शिकार से निरंतर घट रही उनकी संख्या के इस दौर में राजस्थान के रणथम्भौर अभयारण्य में पिछले कुछ वर्षों में बाघों की संख्या में इजाफा इस दिशा में गहरी आशा जगाता है । केन्द्र एवं राज्य सरकार ने रणथम्भौर में बढी बाघों की संख्या के संरक्षण के साथ ही इधर सरिस्का को फिर से बाघों से आबाद करने की दिशा में महत्ती पहल की है । कुछ समय पहले वहां 3 बाघों का पुनर्वास किया गया था और अभी इसी माह 20 जुलाई को एक और बाघ को वहां रणथम्भौर से स्थानान्तरित किया गया है । इसके चलते अब तक वहां 4 बाघ बसाए जा चुके हैं । यूं भी सरिस्का टाइगर रिजर्व अपने प्राकृतिक परिवेश और लंबे-चौड़े क्षेत्रफल, घने जंगल के कारण बाघों के लिए सर्वथा अनुकूल अभयारण्य है । ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वहां बसाए इन बाघों के परस्पर मेल से आने वाले वर्षों में बाघ जनसंख्या में वृध्दि होगी,बशर्ते कि शिकारियों के शिकार से मौजूदा बाघ वहां बचे रहें ।

बहरहाल, ऐसे दौर में जब पूरा विश्व बाघों की आबादी घटने के संकट से जूझ रहा है, राजस्थान में बाघों की आबादी में पिछले वर्षों में हुई बढोतरी सुखद संकेत है । दरअसल राजस्थान में बाघ संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयासों के चलते ही रणथम्भौर बाघ अभयारण्य में बाघों की संख्या में पहले से वृध्दि हुई है । मसलन वर्ष 2005 में राजस्थान में बाघों की संख्या मात्र 26 ही थी, जो अब बढक़र 44 हो गई है । इनमें रणथम्भौर में 40 और सरिस्का में पुनर्वास किए 4 बाघ सम्मिलित हैं ।

राज्य में दरअसल बाघ संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत की पहल पर प्रभावी रणनीति के तहत दीर्घकालीन योजना बनाकर कार्य किया जा रहा है । इसी के चलते रणथम्भौर में बाघों की संख्या पहले से बढी है । रणथम्भौर में बाघों की संख्या बढने क़े साथ ही बड़ी समस्या अब यह होने लगी है कि वहां का क्षेत्रफल बाघों के लिए अब कम पड़ने लगा है । वर्तमान में महज 282 वर्ग किलोमीटर मुख्य क्षेत्र ही बाघों के लिए बचा है । वहां एक हजार 112 वर्ग किलोमीटर बफर क्षेत्र घोषित किया गया है जिसमें इंसानों की आबादी भी रहती है ।

राज्य सरकार ने बफर क्षेत्र से लोगों को स्थानांतरित करने के प्रयास भी इधर निरंतर किए हैं । परन्तु अभी भी बहुत से लोग अपना स्थान छोड़ने के लिए राजी नहीं है राज्य सरकार के महती प्रयासों से अब तक 33 परिवारों को स्थानांतरित किया जा चुका है । इससे वहां 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बाघों के लिए खाली हो गया है, परन्तु इस दिशा में अभी और भी अधिक प्रयास किए जाने हैं । हालांकि स्वैच्छिक रूप से लोगों को बाघ संरक्षित क्षेत्र से स्थानांतरित करने के लिए सरकार ने 102 करोड़ रूपये स्वीकृत भी किए हैं और ऐसी उम्मीद है कि इस राशि से लोगों के बहुत हद तक पुनर्वास में मदद मिलेगी ।

बहरहाल , वन्यजीव संरक्षण का विषय संविधान की समवर्ती सूची में सम्मिलित है। इसके तहत राज्यों में वन्य जीव संरक्षण के लिए संस्थाएं बनाने का प्रावधान है । इसी के तहत राजस्थान में मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत की पहल पर हाल में सरिस्का और रणथम्भौर दोनों टाइगर रिजर्व के लिए अलग-अलग बाघ संरक्षण फाउण्डेशन का गठन किया है । यह इसलिए बेहद महत्वपूर्ण कदम है कि बाघ संरक्षण के लिए अब तक राज्य सरकार को केन्द्र सरकार की वित्तीय सहायता के भरोसे ही रहता पड़ता था, परन्तु अब बाघ संरक्षण फाउण्डेशन गठन से बाघ संरक्षण में आ रही वित्तीय पोषण संबंधी समस्या का प्रभावी निदान हो सकेगा । यही नहीं इससे स्थानीय स्टेक होल्डर्स , जन प्रतिनिधियों एवं स्थानीय समुदायों की भी बाघ संरक्षण के लिए सीधी सहभागिता राज्य सरकार सुनिश्चित कर सकेगी ।

प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री रामलाल जाट बताते हैं कि बाघ संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों को वनों के संरक्षण में भागीदारी देने पर हम जोर दे रहे हैं । हमारा प्रयास है कि हम बाघों की सुरक्षा के लिए सामाजिक सुरक्षा बलों को तैयार करें । हमने अर्से से रिक्त पड़े वन रक्षकों के एक हजार पदों को भरने की भी पहल की है । वन क्षेत्रों में रहने वाली आबादी को वहां से स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को भी हमने तेज किया है और लोगों से इस हेतु निरंतर समझाइश भी की जा रही है । राजस्थान में पानी कि किल्लत है, इसे देखते हुए टाइगर रिजर्व क्षेत्र में जल स्रोतों को विकसित करने के लिए नाबार्ड के सहयोग से 40.99 करोड़ रूपये की परियोजना स्वीकृत करवाई गयी है जिसके तहत 85 जल संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है ।

बाघ संरक्षण के लिए दरअसल जरूरी यही है कि बाघों के प्राकृतिक वास और मुख्य शिकारगाहों को बचाया जाए । इस दिशा में राजस्थान में कुछ ठोस कार्य किए गए हैं । मसलन रणथम्भौर में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन किया जा रहा है । इसके तहत एक डिप्टी कमाण्डेट , 3 सब इन्सपेक्टरों, 18 हैड कांस्टेबलों एवं 90 कांस्टेबलों की नियुक्तियां पुलिस विभाग द्वारा शीघ्र की जाएंगी । इसके अलावा बाघ संरक्षण क्षेत्रों में बसे गांवों के लोगों को वहां से हटाने की दिशा में भी इधर विशेष तेजी लायी गयी है । सरिस्का क्षेत्र से एक ग्राम भगानी एवं रणथम्भौर में दो ग्राम इण्डाला एवं माचनकी का अन्यत्र विस्थापन किया जा चुका है । सरिस्का में कांकवाड़ी एवं उभरी गांवों के विस्थापन का कार्य चल रहा है। इसी प्रकार रणथम्भौर में भी कालीभाट, धोधाकी, भीमपुरा, मातोरियाकी डांगरा, खटूली, मूंउरेहड़ी, हिंदवाड, मोर डूंगरी, भीड़ आदि के गांवों के विस्थापन की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है । इन गांवों के वहां से विस्थापन से बाघ संरक्षण क्षेत्र का दायरा ही नहीं बढेग़ा बल्कि बाघों की संरक्षण एवं सुरक्षा की दिशा में भी प्रभावी पहल हो सकेगी ।

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