85 वर्षीय बंसी राम सोलन बाजार में झाड़ू बेचकर गुजर-बसर को मजबूर

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सोलन: हिमाचल प्रदेश में आजकल हर तरफ लोकसभा चुनावों का शोर सुनाई देता है। नेता विकास के बड़े-बड़े दावे करते नहीं थकते, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ ओर ही है। आजादी के 75 वर्षों बाद भी लोगों को आज भी दो जून की रोटी कमाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। बेरोजगार युवा ही नहीं कुछ बुजुर्गों के समक्ष भी रोजी-रोटी की चिंता है। भले ही वह सीधे नहीं चल सकते हैं, लेकिन फिर भी सम्मान की रोटी कमाने उन्हें आज भी कड़ी मेहनत करते देखा जा सकता हैं। इसका प्रमाण है धारों की धार गांव के 85 वर्षीय वयोवृद्ध बंसी राम।

बाजार में बेचते हैं झाड़ू….

सोलन विकास खंड के धारों की धार गांव निवासी 85 वर्षीय बंसी राम उम्र में भी खुद झाड़ू बनाकर उन्हें सोलन बाजार में बेच कर अपना घर चला रहे हैं। सोलन शहर से करीब 20 किलोमीटर दूर धारों की धार गांव है। बंसी राम पहले गांव में झाड़ू के लिए जंगल से झाड़ू में लगने विशेष घास (स्थानीय भाषा में मुंजी) और पाइन निडल यानि चीड़ की पत्तियों को एकत्र करते हैं और उनके झाड़ू और लिपाई का झाड़ू (स्थानीय भाषा में मशाडक़ा) बनाते हैं। इस श्रम साध्य कार्य करने के बाद वह अपने झाड़ू को सोलन बाजार में सस्ते दामों पर बेचते हैं। सोलन के पुराने बस स्टैंड पर महेंद्रजीज के समीप एक खंबे से अपनी पीठ टिका कर इन्हें बेचते हैं। उम्र के इस पड़ाव में उनकी कमर झुक गई है, लेकिन हौसला अभी पहाड़ की तरह है।

क्या कहना है बंसी राम का…

बंसी राम बताते हैं कि वह घर पर अकेले ही रहते हैं पत्नी का बहुत समय पहले निधन हो चुका है। इन झाड़ू को बेचकर उनका गुजर-बसर हो रहा है। बंसी राम बताते हैं कि हालांकि उन्हें वृद्धावस्था पेंशन भी मिलती है, लेकिन आज मंहगाई बढ़ गई है। बंसी राम के बनाए झाड़ू आज के इस मंहगाई के युग में भी मशाडक़ा 10 रुपए और मुंजी से बना झाड़ू 20 रुपए में मिल जाता है। इतने कम दाम रखने के बारे में पूछे जाने पर वह कहते हैं कि साहब आज इन झाड़ू का प्रयोग करने वाले लोग बिरले ही है। ज्यादा दाम किए तो कोई नहीं लेगा। मुंजी से बने झाड़ू को शुभ माना गया है और अधिकतर मंदिरों को साफ करने के लिए इन झाड़ूओं का प्रयोग होता है।

dharo kidhar

घर की लिपाई-पुताई में भी यह झाड़ू प्रयोग में लाए जाते हैं, लेकिन वर्तमान युवा पीढ़ी इनसे अनभिज्ञ हैं। वह कहते हैं कि यह झाड़ू हमारी परंपरा से जुड़े हैं, पहले हर घर के बुजुर्ग इनको बनाते थे, लेकिन युवा इन झाड़ू को बनाना तो दूर इस्तेमाल करना तक नहीं जानते। इन्हें बनाना सीखना चाहिए। सोलन शहर के कुछ लोग बुजुर्ग का सम्मान करने के लिए उनके तैयार झाड़ू खरीदते हैं ताकि बंसी राम का आर्थिक सहयोग हो सकें।