नाहन: टीबी यानी ट्यूबरकुलाइसिस को हराकर जिला सिरमौर के अनिल ठाकुर वर्षों से लगातार टीबी के जुडी भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास करने में लगे हैं। वह टीबी मरीजों के घर-घर जाकर उनके परिवार को भेदभाव न करने की सलाह देने के साथ-साथ मरीज को सही इलाज की सलाह भी देते हैं। आज अनिल हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों के टीबी विजेताओं, राज्य क्षय विभाग और राष्ट्रीय क्षय अन्मूलन कार्यक्रम की सहयोगी संस्था के साथ मिलकर हिमाचल को 2025 तक टीबी मुक्त बनाने के लक्ष्य को लेकर काम कर रहे हैं |
अनिल का कहते हैं कि राज्य क्षय विभाग, टीबी विजेता और सहयोगी संस्था तो हिमाचल को टीबी मुक्त बनाने के लिए काम कर ही रही है, लेकिन आम जनता को भी इस कार्यक्रम में अपना सहयोग देना चाहिए | अनिल का मानना है कि यह कार्यक्रम एक जन आंदोलन है और यदि समाज इस कार्यक्रम में अपना पूर्ण सहयोग दे तो हम बहुत जल्द हिमाचल को टीबी मुक्त राज्य बना सकते है |
वर्ष 2018 में अनिल ठाकुर को फेफड़ों का टीबी हो गया और एक निजी हस्पताल की लापरवाही से उनकी टीबी की बीमारी लगभग 1 महीने के बाद पकड़ में आई, लेकिन तब तक उनकी बीमारी बिगड़ चुकी थी | सही समय पर टीबी का इलाज शुरू ना होने की वजह से उनकी 3 साल की बेटी और 7 साल के बेटे को भी टीबी का इन्फेक्शन हो गया | अनिल ठाकुर को कई दिनों तक टीबी हॉस्पिटल धर्मपुर में भी रहना पड़ा | गंभीर बीमारी के चलते उनका वजन 65 किलो से घट कर 43 किलो रह गया | यह समय अनिल के लिए बेहद मुश्किल भरा था क्योंकि एक तरफ वह खुद बीमारी का दर्द सह रहे थे और दूसरी तरफ अब उन्हें अपने दोनों बच्चों की चिंता सता रही थी | क्या वह टीबी से ठीक हो पाएंगे या नहीं और यदि उन्हें कुछ हो जाता है तो बच्चों का क्या होगा, तरह-तरह की चिंताए मन को सत्ता रही थी | एक तरफ जहां उनका व्यवसाय समाप्त होने के कारण आर्थिक स्थिति कमजोर हुई वहीं अब इलाज में भी काफ़ी खर्च होने लगा था |
आर्थिक तंगी के साथ-साथ एक और बड़ी चुनौती समाज का अपने प्रति बदला रुख भी उन्होंने देखा जिसकी वजह से वह अंदर तक टूट गये | बीमारी की वजह से बहुत से लोगो ने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी उनके कई अपने उनसे मिलने तक नहीं आए | अनिल ने बताया कि अगर सही समय पर सरकारी अस्पताल में उनका इलाज शुरू नहीं हुआ होता तो शायद आज वह इस दुनियां में नहीं होते | कहते है ना कि “जाको राखे सईंया मार सके ना कोय” धर्मपुर टीबी अस्पताल में कुछ दिन इलाज के बाद अनिल नाहन आए और 3 महीने तक वही रहे और उनका इलाज 9 महीने चलता रहा | इस बीच मन में यही सोच परेशान करती रही कि यदि मेरे साथ ऐसा हुआ तो समाज में ऐसे कितने लोग होंगे जो इस किस्म का दर्द सहते होंगे | कितना अकेलापन सेहन करना पड़ता होगा, टीबी के साथ जी रहे लोगो से बाकी लोग क्यों इतना डरते है या टीबी के साथ जी रहे लोगों के साथ भेदभाव करते हैं | जीवन के इस संघर्ष के बाद अनिल ठाकुर ने समाज में लोगो को टीबी के प्रति जागरूक करने का और टीबी के प्रति डर को ख़त्म करने का फैसला लिया |
अनिल ठाकुर अब हिमाचल को 2025 तक टी बी मुक्त बनाने के लक्ष्य को ले कर काम कर रहे हैं | टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत साल 2025 तक भारत से टीबी उन्मूलन को लेकर अनिल ठाकुर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं | अनिल के कार्य की सराहना करते हुए 24 मार्च 2023 को igmc शिमला द्वारा उन्हें टीबी की कहानी के लिए राज्य में प्रथम पुरुस्कार से सम्मानित किया गया | he union नाम की संस्था द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया | इसके अतिरिक्त रोटरी क्लब नाहन भी उन्हें उनके काम के लिए सम्मानित किया गया | समय-समय पर अनिल टीबी मुक्त भारत अभियान के लिए सरकार द्वारा आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों, कार्यशालाओ, और बैठकों में अपने विचारों और सुझावों को रखते हैं |