सिरसा : प्रख्यात रंगकर्मी और कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा व सांकृतिक कार्यों के निदेशक अनूप लाठर का कहना है कि हरियाणवी सिनेमा राज्य सरकार के संरक्षण व समर्थन के बिना पटरी पर नहीं लौट सकता। बेहतरीन हरियाणवी फिल्मों का निर्माण सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि उन्हें मनोरंजन कर से मुक्त किया जाए और सिनेमाघरों में इन फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य हो। महाराष्ट्र व कर्नाटक समेत कई राज्यों का भाषाई सिनेमा इस प्रकार की सुविधाओं के बल पर ही पनपा है। यह बात आज पिछले करीब ढाई दशक से फिल्म, रंगमंच और हरियाणवी लोकसंस्कृति के संरक्षण से जुड़े अनूप लाठर ने चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम वेबवार्ता के तहत कहे। वेबकांफ्रेंसिंग के जरिए हुए इस संवाद का संचालन विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान ने किया।

लाठर ने कहा कि हरियाणवी सिनेमा के लिए इन सुविधाओं का प्रावधान करते हुए सरकार चाहे तो यह शर्त रख सकती है कि फिल्मों के निर्देशक व अभिनेता पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए हों। कार्यक्रम के प्रारंभ में विभागाध्यक्ष वीरेन्द्र सिंह चौहान ने विद्यार्थियों से अनूप लाठर का परिचय कराते हुए बताया कि मृत्यु की कगार पर पंहुची हरियाणवी लोकविधा सांग को पुनर्जीवित करने का श्रेय लाठर व उनके मार्गदर्शन में पिछले ढाई दशक से काम कर रहे कला साधकों को जाता है। उन्होंने बताया कि हरियाणवी आर्केस्ट्रा व हरियाणवी गजल सरीखी नितांत नूतन विधाएं कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा समारोहों में से उपज कर लोकप्रिय हुई हैं। चौहान ने कहा कि इन अभिनव प्रयोगों की कामयाबी का श्रेय लाठर को जाता है। एक सवाल के जवाब में लाठर ने कहा कि जिस तरह का मान और मोहब्बत पंजाब के लोक कलाकारों को वहां के आमजन से प्राप्त होती है, वैसा हरियाणा में नहीं मिलता। राज्य में लोकगायकी और अन्य लोकविधाओं के न फलने-फूलने की एक वजह यह भी हो सकती है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय हरियाणवी संस्कृति के संरक्षण व पोषण में सर्वाधिक भूमिका अदा कर सकते हैं। मगर अलग राज्य बनने के बाद भी कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय को छोड़कर कहीं इस दिशा में ठोस काम नहीं हुआ। कुरूक्षेत्र विवि ने जो अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किए उन्हें भी दूसरे विश्वविद्यालयों ने अपनाया नहीं।

लाठर का मानना है कि संस्कृति की रक्षा व पोषण हरियाणा में कभी सरकारी तंत्र की प्राथमिकता में शुमार नहीं रहा। इसका एक प्रमाण ये है कि अधिकांश विश्वविद्यालयों ने आज तक डायेक्टर यूथ एंड कल्चर अफेयर्स के पदों पर नियमित नियुक्तियां करने की जहमत ही नहीं उठाई। एक विद्यार्थी के प्रश्न के उत्तर में अनूप लाठर ने कहा कि विद्यार्थियों को और खासकर मीडिया के विद्यार्थियों को अपने कोर्स की पुस्तकों के अलावा भी अधिकाधिक समय स्वाध्याय में बिताना चाहिए। एक अन्य विद्यार्थी के सवाल के जवाब में लाठर ने कहा कि हरियाणवी पॉप के नाम पर परोसी जा रही फूहड़ता उन्हें बहुत आहत करती है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की प्रस्तुतियों को आम जन ही रोक सकता है चूंकि अगर लोग ही इन्हें खरीदने व देखने से इनकार करने लगें तो निर्माताओं को अपना रंग-ढंग बदलने पर विचार करना ही होगा।

लाठर ने जोर देकर कहा कि देश की नई पीढ़ी की प्रतिभा व क्षमता को देखकर वे बहुत आशावान हैं। नई पीढी कहीं अधिक उर्जावान और सजग है। इसे सही दिशा दी जा सके तो यह चमत्कारी परिणाम ला सकती है। उन्होंने पत्रकारिता शिक्षा के मामले में चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग द्वारा किए गए विभिन्न नूतन प्रयोगों की सराहना की और कहा कि पत्रकारिता व जनसंचार में व्यवहारिक प्रशिक्षण का बहुत महत्व है। कार्यक्रम के अंत में शिक्षण सहायक व वेबवार्ता के संयोजक सुरेंद्र कुमार ने सबका आभार व्यक्त किया।

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