सोलन: भारत को 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्रता के उपरांत देश के सामने भारत की 562 रियासतों को भारत संघ में जोडऩा चुनौतीपूर्ण कार्य था। कमोवेश यही स्थिति हिमालयन प्रांत कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश की भी थी। रियासतों के राजा अपना राज पाठ त्यागना नहीं चाहते थे। हिमालयन प्रांत में 30 रियासतें थी। यहां राजाओं के खिलाफ प्रजामंडलों का निर्माण हो रहा था, लेकिन उनके पास शक्तिशाली नेतृत्व की कमी थी।

इस कार्य की बागडोर बघाट रिसायत के अंतिम राजा दुर्गा सिंह ने अपने हाथों में ली। राजा होते हुए भी उन्होंने दूसरी रियासतों के राजाओं के पक्ष में कोई निर्णय नहीं लिया। दशकों के संघर्ष और भारत की आजादी के बाद, हिमाचल प्रांत को अंतत: 15 अप्रैल, 1948 को मान्यता दी गई।

ये हैं इतिहास….

हिमाचल के प्रजामंडलों व संविधान सभा का अध्यक्ष भी राजा दुर्गा सिंह को नियुक्त किया गया। उन्होंने अपनी बुद्धिमता से हिमाचली रियासतों के राजाओं को हिमाचल प्रदेश व भारत संघ में विलय पत्र पर हस्ताक्षर करवाने के लिए राजी करवाया। प्रजा मंडलों व राजाओं से मिल-जुलकर हिमालयन प्रांत को जोड़ा। सोलन के राज दरबार हॉल में प्रदेश के राजाओं को एकमंच पर लाया गया।

वर्तमान हिमाचल प्रदेश का नामकरण का ऐतिहासिक हिमाचल प्रदेश भी राजा दुर्गा की अध्यक्षता में सोलन के राजदरबार हॉल में रखा गया था। इस पर अन्य राजाओं व प्रजामंडल के नेताओं ने भी अपनी स्वीकृति दी। 8 फरवरी 1948 को ही राजा दुर्गा सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने डॉ. पट्टाभि सीतारामैया से मुलाकात की, जिसमें प्रजामंडल के कुछ सक्रिय नेता, सभी सामंत शामिल थे।

केंद्रीय नेताओं के सामने उन्होंने हिमाचल के बारे में अपना प्रस्ताव रखा और उन्हें पर्वतीय क्षेत्र के लिए उपयुक्त रणनीति से अवगत करवाया। 8 मार्च 1948 को भारत सरकार ने विधिवत चर्चा-परिचर्चा के बाद मंजूरी दे दी। इस तरह 30 चर्चित पहाड़ी रियासतों का एक नवनिर्मित राज्य भारत में विलय हो गया। इसकी औपचारिक घोषणा 15 अप्रैल 1948 को हुई। हिमाचल की नवरचना का ताना बाना सोलन के दरबार हॉल में ही बुना गया। इसका उल्लेख म्हारा बघाट पुस्तक में भी मिलता है।

प्रदेश की धरोहर है सोलन का दरबार हॉल: कुंवर सतिंद्र सिंह

सोलन राजपरिवार के वरिष्ठ सदस्य स्वर्गीय कुंवर सतिंद्र सिंह ने करीब तीन वर्ष पूर्व इंटरव्यू में बताया था कि सोलन का दरबार हॉल न सिर्फ सोलन बल्कि प्रदेश की धरोहर है। कुंवर सतिंद्र सिंह का 16 अक्टूबर 2023 में 96 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने बताया था कि इस दरबार हॉल में हिमाचल का नामकरण हुआ था। वह उस समय कॉलेज स्टूडेंट थे। कुंवर सतिंद्र सिंह ने बताया कि था राजा दुर्गा सिंह के शासनकाल के दौरान बनी यह सबसे बड़ी बिल्डिंग थी। इस ईमारत की भव्यता देखते ही बनती थी।

करीब 100 वर्ष पुराना है सोलन का दरबार हाल

कुंवर सतिंद्र सिंह ने बताया था कि दरबार हॉल का निर्माण उनके जन्म से पहले हो चुका था। सोलन के सभी बड़े पब्लिक समारोह दरबार हॉल में ही हुआ करते थे। दशहरा समारोह उस समय यहां का सबसे बड़ा आयोजन हुआ करता था। यहां अस्त्र-शस्त्र पूजा होती थी। हॉली मिलन समारोह भी यहां मनाया जाता था, इसमें ब्रुअरी वाले विशेष रूप से शिरकत करते थे। होली पर सोलन में भव्य आयोजन दरबार हॉल में होती था।

उन्होंने बताया था कि 28 जनवरी 1948 को सोलन के दरबार हॉल में हिमाचल के गठन के लेकर बैठक हुई थी। राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में भागमल सोहटा, शिवानंद रमौल, पंडित समेत कई गणमान्य लोग मौजूद रहे। यह बैठक दरबार हॉल में कैमरों की निगरानी में हुई थी। बैठक में डॉ. यशवंत सिंह परमार व पदमदेव के शामिल होने पर विवाद हुआ। इस विवाद को शांत करने के बाद प्रदेश राजा, हिमाचल में विलय के लिए तैयार हुए। सभी राजाओं ने एकमत होकर नए प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश रखा।

दरबार हॉल अपने पास रख लो…

रिसासतें का जब हिमाचल में विलय हो रहा था, तब राजा दुर्गा सिंह के अधिकारियों ने उनसे कहा कि राजा साहब यह दरबार हाल आप अपने पास रख लो आपके काम आएगा। 1948 में ही रानी साहिबा की मौत हुई थी। राजा के पास कोई संतान नहीं थी। एक बेटी हुई थी, जो डेढ़ वर्ष की आयु में ही मर गई थी। इससे राजा ने कहा कि उन्हें दरबार हाल की कोई जरूरत नहीं और उन्होंने यह सरकार को दे दिया। सोलन के दरबार हाल में आजकल लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता का कार्यालय चल रहा है।

दरबार हॉल में था डॉयनिंग रूम

कुंवर सतिंद्र सिंह ने बताया था कि सोलन दरबार हाल में एक बड़ा डॉयनिंग रूम था। राज परिवार के अतिथि, राजनायिक, वॉयसरॉय व विदेशी प्रतिनिधि इसी डॉयनिंग हॉल में भोजन किया करते थे। इस प्रकार यह दरबार हॉल अपने भीतर एक इतिहास समेटे हुए हैं और प्रदेश की जनता के लिए धरोहर है, जिसका संरक्षण करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है।

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