नाहन 02 फरवरी : सीटू जिला कमेटी सिरमौर ने केंद्रीय बजट को पूर्णतः मजदूर, ट्रांसपोर्ट, कर्मचारी, किसान व जनता विरोधी करार दिया है। यह बजट गरीब विरोधी है व केवल पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला है। सीटू ने केंद्र सरकार को चेताया है कि केंद्र की मजदूर, ट्रांसपोर्ट, कर्मचारी, किसान व जनता विरोधी नीतियों के खिलाफ 16 फरवरी को देशव्यापी हड़ताल होगी। इस दौरान जिला सिरमौर के औद्योगिक क्षेत्र, ट्रांसपोर्ट, आंगनबाड़ी, मिड डे मील, मनरेगा, निर्माण क्षेत्र, निर्माण, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट आदि सार्वजनिक सेवाओं, आउटसोर्स कर्मी, अन्य व्यवसायों के मजदूर व कर्मचारी हड़ताल पर रहेंगे। इस दिन किसानों का ग्रामीण व देहात बन्द रहेगा।
सीटू जिला अध्यक्ष लाल सिंह व महासचिव आशीष कुमार ने कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार पूरी तरह पूँजीपतियों के साथ खड़ी हो गयी है व आर्थिक संसाधनों को आम जनता से छीनकर अमीरों के हवाले करने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। मोदी सरकार ने अभी तक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में चार लाख करोड़ रुपये से अधिक का विनिवेश किया है तथा बेहद संवेदनशील रणनीतिक रक्षा क्षेत्र को भी इसके दायरे में लाकर यह सरकार पूंजीपतियों के आगे घुटने टेक चुकी है तथा देश के संसाधनों का दुरुपयोग कर रही है। विनिवेश की सीमा को इस बजट में तीस हज़ार करोड़ से बढ़ाकर वर्ष 2024 में यह लक्ष्य पचास हज़ार करोड़ रुपये निर्धारित किया गया है। बजट में बैंक, बीमा, रेलवे, एयरपोर्टों, बंदरगाहों, ट्रांसपोर्ट, गैस पाइप लाइन, बिजली, सरकारी कम्पनियों के गोदाम व खाली जमीन, सड़कों, स्टेडियम सहित ज़्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करके बेचने का रास्ता खोल दिया गया है। ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस के नारे की आड़ में मजदूर विरोधी लेबर कोडों व बारह घण्टे की डयूटी को अमलीजामा पहनाकर यह बजट *इंडिया ऑन सेल* का बजट है। इस से केवल पूंजीपतियों,उद्योगपतियों व कॉरपोरेट घरानों को फायदा होने वाला है व गरीब और ज़्यादा गरीब होगा।
खुद को गरीबों की सरकार कहने वाली मोदी सरकार गरीबों को खत्म करने पर आमदा है। मजदूरों के 26 हज़ार रुपये न्यूनतम वेतन की मांग ज्यों की त्यों खड़ी है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा है कि आम भारतीय की आय पचास प्रतिशत से अधिक बढ़ी है जबकि अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ ने हालिया जारी आंकड़ों में स्पष्ट किया है कि भारत के करोड़ों मजदूरों का वास्तविक वेतन महंगाई व अन्य खर्चों के मध्यनज़र घटा है। यह सरकार जनता को मूर्ख बनाने का कार्य कर रही है। महिला सशक्तिकरण व नारी उत्थान के नारे देने वाली केंद्र सरकार ने गरीबों व महिलाओं को इस बजट में आर्थिक तौर पर कमज़ोर किया है। देश का सबसे गरीब तबका व सबसे ज़्यादा महिलाएं सामाजिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाली मनरेगा व स्कीम वर्करज़ जैसी कल्याणकारी योजनाओं में कार्य करते हैं। इन क्षेत्रों के बजट में भारी कटौती की गई है। अकेले आंगनबाड़ी के बजट में तीन सौ करोड़ रुपये की कटौती की गई है। सरकार ने मनरेगा के बजट में भारी उदासीनता दिखाई है। बजट में आंगनबाड़ी कर्मियों के वेतन में एक भी रुपये की बढ़ोतरी नहीं की गयी है। केंद्र सरकार ने पिछले पांच वर्षों से आंगनबाड़ी व पिछले पंद्रह वर्षों से मिड डे मील कर्मियों के वेतन में एक भी रुपये की बढ़ोतरी नहीं की है।
बच्चों की शिक्षा में अहम योगदान देने वाली मिड डे मील योजना के बजट की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के कारण इस योजना के जारी रहने पर संशय बरकरार है। देश में सबसे कम वेतन लेने वाले योजना कर्मियों जिन्हें सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता है व जिन्हें केंद्र सरकार एक हज़ार से चार हज़ार रुपये वेतन प्रतिमाह देती है, उनके बजट में भारी कटौती की गई है जबकि खजाना खाली होने का रोना रोने वाली केन्द्र सरकार ने पूंजीपतियों से लाखों करोड़ रुपये के बकाया टैक्स को वसूलने पर एक शब्द तक नहीं बोला है। इसके विपरीत पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए कॉरपोरेट टैक्स को घटा दिया गया है। सरकार ने पिछले पांच वर्षों में योजना कर्मियों के बजट में लगातार कटौती की है जबकि दूसरी ओर पूंजीपतियों के टैक्स लगातार घटाकर उन्हें भारी राहत दी गयी है। टैक्स चोरी करने वाले पूंजीपतियों को सरकार ने पिछले पांच वर्षों में लगातार संरक्षण दिया है जोकि बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील कर्मियों से 11 साल पहले यूपीए सरकार के 45वें भारतीय श्रम सम्मेलन में उनके नियमितीकरण के वायदे को मोदी सरकार ने पिछले दस साल में रद्दी की टोकरी में डाल दिया है जोकि देश में सरकारी क्षेत्र में सेवाएं देने वाली सबसे गरीब 65 लाख महिलाओं से क्रूर मज़ाक है।