काँगड़ा: मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज यहां अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस ‘समर्थ-2024’ की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आपदा के प्रभावी प्रबन्धन में जागरूकता महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, जिससे जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण आपदा की घटनाओं में वृद्धि हुई है। इसलिए आपदाओं का बेहतर प्रबन्धन सुनिश्चित कर हमें इन चुनौतियों के साथ जीना सीखना होगा।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार पर्याप्त धनराशि व्यय कर लोगों को आपदा से निपटने की तैयारियों के बारे में जागरूक कर रही है और आपदा से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए कई उपाय अपनाए जा रहे हैं। आपदा की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्राधिकरण को सदैव तैयार रहना चाहिए। इस दिशा में फ्रांस की एजेंसी एएफडी के सहयोग से 800 करोड़ रुपये की परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है और मिटीगेशन फंड से 500 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने पालमपुर में एक मुख्य एसडीआरएफ प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने की घोषणा भी की। राज्य सरकार प्रदेश में बेहतर मौसम पूर्वानुमान के लिए बुनियादी अधोसंरचना को भी सुदृढ़ कर रही है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1905 में प्रदेश में पहली बड़ी प्राकृतिक आपदा में कांगड़ा जिला में भूकंप के कारण 20,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। पिछले वर्ष मॉनसून के दौरान प्रदेश के लोगों ने तबाही का मंजर देखा, जिसमें 500 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई और 10,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति का नुकसान हुआ था। केंद्र सरकार से किसी प्रकार की वित्तीय सहायता न मिलने के बावजूद, राज्य सरकार ने 23,000 प्रभावित परिवारों का पुनर्वास किया और 4,500 करोड़ रुपये का आपदा राहत पैकेज लागू किया है। इस पैकेज के तहत पूरी तरह से नष्ट हो चुके घरों के लिए मुआवजे की राशि 1.30 लाख रुपये से बढ़ाकर सात लाख रुपये किया गया। इसके अलावा, सरकार ने आपदाओं के दौरान लापता हुए लोगों के परिवारों के लिए मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए नियमों में संशोधन भी किया है।
मुख्यमंत्री ने आपदा राहत प्रयासों में राजनीतिक हस्तक्षेप की आलोचना करते हुए कहा कि प्रदेश को अभी तक आपदा उपरांत आवश्यकता आकलन (पीडीएनए) के 10,000 करोड़ रुपये नहीं मिले हैं। विपक्ष द्वारा खड़ी की गई तमाम बाधाओं के बावजूद उनके निरंतर प्रयासों के फलस्वरूप इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के मामलों में राजनीति नहीं होनी चाहिए और प्रभावित लोगों को पूरी सहायता प्रदान की जानी चाहिए।
आपदा के दौरान, उन्होंने 72 घंटे तक स्वयं आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर बचाव व राहत कार्यों का निरीक्षण किया। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से राज्य से 75,000 पर्यटकों और 15,000 वाहनों को सुरक्षित निकालने का अभियान चलाया। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी प्राकृतिक आपदा के बावजूद 48 घंटों के भीतर, बिजली, पानी और संचार जैसी आवश्यक सेवाओं को अस्थायी रूप से बहाल किया गया, जिससे राहत कार्यों को सुचारू रूप से चलाने में मदद मिली। राज्य सरकार ने किसानों, विशेष रूप से सेब उत्पादकों की उपज को सुरक्षित रूप से मंडियों तक पहुंचाने की व्यवस्था भी सुनिश्चित की, ताकि उन्हें अपने उत्पादों के बेहतर दाम मिले। विश्व बैंक, नीति आयोग और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने राज्य के प्रभावी आपदा प्रबन्धन कार्यों की सराहना की।
मुख्यमंत्री ने आपदा के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी और मुख्य संसदीय सचिव संजय अवस्थी की अगुवाई में प्रदेश सरकार ने लाहौल-स्पीति जिला के चंद्रताल से 303 फंसे पर्यटकों को सफलतापूर्वक बचाया और सभी पर्यटकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की गई।
हिमाचल प्रदेश का स्वच्छ और हरित पहाड़ी राज्य का स्वरूप बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए समाज के सभी वर्गों को अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी होगी। उन्होंने 31 मार्च, 2026 तक हिमाचल को हरित ऊर्जा राज्य के रूप में स्थापित करने की राज्य सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराते हुए कहा कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों के दोहन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
मुख्यमंत्री ने राज्य आपदा न्यूनीकरण निधि पोर्टल का शुभारंभ किया और हिमाचल प्रदेश में महत्वपूर्ण भवनों के लिए भूकंप रेट्रोफिटिंग कार्यक्रम की भी शुरुआत की। सरकार की इस पहल को सीबीआरआई रुड़की, एनआईटीटीटीआर चंडीगढ़ और एनआईटी हमीरपुर की तकनीकी विशेषज्ञता का सहयोग मिलेगा। इसके अतिरिक्त, बाल रक्षा भारत और जी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के सहयोग से जिला सोलन की ग्राम पंचायत बवासनी में रेजिलिएंट मॉडल विलेज विकसित करने के लिए रीबिल्डिंग लाइव नामक एक कार्यक्रम भी शुरू किया गया।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू की उपस्थिति में हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एचपीएसडीएमए) ने प्रदेश में इंजीनियरों, वास्तुकारों, बिल्डरों और राज मिस्त्रियों के कौशल उन्नयन के लिए सीबीआरआई रुड़की के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। इस समझौता ज्ञापन के अंतर्गत जिला कांगड़ा के रैत में एएफडी कार्यक्रम के लक्ष्यों के अनुरूप एक प्रशिक्षण और प्रदर्शन इकाई (टीडीयू) स्थापित की जाएगी।
कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय भवन अनुसंधान रूड़की के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए प्रकाशन कवच-1 व कवच-2 का विमोचन किया। उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को सम्मानित किया और इस मॉनसून के दौरान समेज, बागीपुल, राजबन में बादल फटने की घटनाओं के दौरान किए गए असाधारण राहत कार्यों के लिए विभिन्न व्यक्तियों को सम्मानित भी किया।
मुख्यमंत्री ने आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया हेतु युवा स्वयंसेवियों की टास्क फोर्स के लिए जिला कांगड़ा और चम्बा को ‘सर्वोत्तम प्रदर्शन करने वाले जिला’ पुरस्कार से सम्मानित किया। इससे पूर्व, मुख्यमंत्री ने रिज पर आपदा जागरूकता प्रदर्शनी का शुभारम्भ भी किया।
विधायक हरीश जनारथा, नगर निगम शिमला के महापौर सुरेन्द्र चौहान, उप-महापौर उमा कौशल, अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व आंेकार चंद शर्मा, एडीजीपी सतवंत अटवाल, सी.बी.आर.आई., रूड़की के निदेशक प्रदीप कुमार, विशेष सचिव राजस्व डीसी राणा, उपायुक्त अनुपम कश्यप और पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी इस अवसर पर उपस्थित थे।