भोलेनाथ ने स्वप्न में दिया पुनर्निर्माण का आदेश: नाहन के नीलकंठ महादेव की चमत्कारी कहानी

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By पंकज जयसवाल

नाहन : जिला मुख्यालय नाहन के शोर-शराबे से दूर, तलहटी में एक अलौकिक शांति और आस्था का केंद्र स्थित है—स्वयंभू श्री नीलकंठ महादेव मंदिर, जिसे स्थानीय रूप से “जोगन वाली” मंदिर के नाम से जाना जाता है। कोटड़ी लिंक रोड पर जुड़ड़े का जोहड़ से लगभग एक किलोमीटर अंदर स्थित यह अति प्राचीन शिवलिंग अपनी अद्भुत धार्मिक महत्ता और प्राकृतिक सुंदरता के कारण भक्तों के लिए एक विशेष स्थान रखता है।

त्रेता युग से जुड़ी है मंदिर की कहानी
इस मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है और माना जाता है कि इसकी जड़ें त्रेता युग से जुड़ी हैं। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने भी अपने अज्ञातवास के दौरान इस स्थान पर आकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी।

मंदिर परिसर में सदियों से प्रज्वलित प्राचीन धूना इस स्थान की तपस्या और ऊर्जा को प्रमाणित करता है। ‘जोगन वाली’ नाम के पीछे की कहानी है कि किसी समय यहां एक जोगिन (साध्वी) गहन तपस्या में लीन रहती थी। मंदिर के पास ही शिव की नागकन्या मां मनसा देवी का भी एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जो इस स्थान की दिव्यता को और बढ़ाता है।

आपदा के बाद हुआ चमत्कारी पुनर्निर्माण
इतिहास साक्षी है कि दसवीं शताब्दी में सिरमौर रियासत में उथल-पुथल के दौर में, एक बड़े भूस्खलन के कारण मंदिर का अधिकांश ढांचा और अधोसंरचना जमीन में समा गई थी। केवल शिवलिंग और गुंबद के कुछ हिस्से ही शेष रहे, जिन्हें लोग वर्षों तक साधारण पत्थर समझते रहे।

अस्सी के दशक में, स्थानीय निवासी हरिश्चंद्र सैनी के जीवन में तब नाटकीय मोड़ आया जब उन्होंने मंदिर के अवशेषों को अपने घर ले जाने का प्रयास किया। विपत्तियों से घिरने पर, उन्हें स्वप्न में भगवान शिव के साक्षात दर्शन हुए, जिन्होंने उन्हें मंदिर का पुनर्निर्माण करने का निर्देश दिया। हरिश्चंद्र सैनी ने आदेश का पालन किया और इस अद्भुत मंदिर को फिर से स्थापित किया।

कालसर्प दोष निवारण का विशेष स्थान
वर्तमान में, यह मंदिर भक्तों की गहरी आस्था का केंद्र है। प्रत्येक सोमवार को यहां जलाभिषेक के लिए भीड़ उमड़ती है, जबकि श्रावण मास और शिवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी जाती हैं। विशेष रूप से, यह स्थान कालसर्प दोष निवारण और सोमवार के व्रत रखने वाले भक्तों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।

महात्मा हरिऊंगिरी जी का दावा: द्वापर युग की समाधियां और नीलकंठ का रहस्य
मंदिर के वर्तमान संरक्षण से जुड़े महात्मा हरिऊंगिरी जी ने ‘हिल्स पोस्ट मीडिया’ से बात करते हुए इस स्थान की अलौकिक महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इक्कीसवीं सदी की शुरुआत में उन्हें ध्यान की गहन अवस्था में द्वापर युग की प्राचीन समाधियों का आभास हुआ। उनके मार्गदर्शन में हुई खुदाई के दौरान यहां महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और धार्मिक अवशेष प्राप्त हुए।

महात्मा हरिऊंगिरी जी ने आगे बताया, “भोलेनाथ नीलकंठ के रूप में यहां साक्षात विराजमान हैं, ठीक वैसे ही, जैसे उन्होंने समुद्रमंथन के दौरान विष पीकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। यह स्थान उसी दिव्य ऊर्जा का केंद्र है।”

उन्होंने यह भी बताया कि मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य शीघ्र ही प्रारंभ होगा, जिसमें श्रद्धालुओं की सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाएगा। इस मंदिर का संरक्षण गुरु दत्तात्रेय विजयतेतराम, श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा वाराणसी द्वारा किया जाता है।

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पंकज जयसवाल

पंकज जयसवाल, हिल्स पोस्ट मीडिया में न्यूज़ रिपोर्टर के तौर पर खबरों को कवर करते हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 2 वर्षों का अनुभव है। इससे पहले वह समाज सेवी संगठनों से जुड़े रहे हैं और हजारों युवाओं को कंप्यूटर की शिक्षा देने के साथ साथ रोजगार दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।