शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार राज्य में उच्च शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना बनाएगी। यह बात मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने आज सोलन जिला के डॉ. वाई.एस. परमार, औद्यानिकी एवं वानिाकी विश्वविद्यालय, नौणी में ‘रीवाईट्लाईजेशन ऑफ हायर ऐजुकेशन टू मीट नॉलेज चैलेंजिज ऑफ 21वीं सेंचुरी’ विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने 1.72 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित अंतरराष्ट्रीय छात्रावास विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को समर्पित किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार का उद्देश्य सुशासन को बढ़ावा देना तथा निर्धनतम एवं अनुसूचित जाति/जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को लाभान्वित करने के लिए समाज के निचले स्तर पहुंचना है। प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक निजी भागीदारी से राज्य में चिकित्सा, इंजीनियरिंग एवं उच्च शिक्षा अधोसंरचना का विस्तार किया है। प्रदेश में 18 प्रतिशत विद्यार्थियों ने उच्च शिक्षा को अपनाया है, जो देश में सर्वाधिक है तथा प्रदेश सरकार आगामी वर्षों में इसे 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के लिए प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार उद्योग, विश्वविद्यालय तथा अनुसंधान संस्थानों के बीच समन्वय के माध्यम से नई संभावनाएं सृजित करने के प्रयास कर रही है। उन्होंने विकास के उभरते हुए क्षेत्रों-जैसे खाद्य प्रसंस्करण, जैविक कृषि, कार्बन टेªेडिंग, पर्यावरण, तकनीक, पर्यावरण मित्र कीट एवं रोग प्रबंधन रणनीति इत्यादि में अनुसंधान प्राथमिकताओं को शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सभी योजनाओं के कार्यान्वयन में ई-गर्वनंेस के उपयोग को बढ़ावा देने से पारदर्शिता एवं किसान केन्द्रित सेवाएं उपलब्ध करवाने में मदद मिलेगी, जबकि विभिन्न उद्यमों में तकनीकी विकास से व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं दक्षता उन्नयन को प्राथमिकता दिए जाने की आवश्यकता है।

प्रो. धूमल ने कहा कि वैज्ञानिक सूझ-बूझ से विकसित की गयी वर्तमान तकनीक एवं शैक्षणिक ‘मॉड्यूल’ को पर्वतीय आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील बनाया जाना चाहिए तथा पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाओं के प्रति विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूमि की निरंतर उपयोगिता को सुनिश्चित बनाने के लिए देश में वानिकी शिक्षा को और सुदृढ़ बनाए जाने की आवश्यकता है। पहाड़ी संस्थानों के ज्ञान नेटवर्क को पहाड़ी विकास के विभिन्न पहलुओं की सूचना के आदान-प्रदान की आवश्यकता है। उन्होंने आत्मानुशासन के लिए बहुआयामी विकल्पों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि विगत वर्षों के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसके फलस्वरूप विभिन्न संकायों के माध्यम से जटिल समस्याओं का समाधान संभव हुआ है। मुख्यमंत्री ने मूल्यों, दूरदर्शिता एवं प्रभावी संचार को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि सकारात्मक वातावरण एवं जिम्मेदारी को वहन करने की क्षमता विकसित की जा सके। लोगों को यह समझने की आवश्यकता है कि सामाजिक बदलाव उनके सहयोग से संभव है, केवल तकनीक के माध्यम से ही यह अदलाव लाना संभव नहीं है क्योंकि तकनीक केवल मानव प्रयासों का ही परिणाम है। मानव संसाधन विकास को हर स्तर पर प्रमुखता दिए जाने की आवश्यकता है तथा इसे राष्ट्र की समुचित रणनीति का हिस्सा बनाया जा सके। उन्होंने कहा कि विषयों के स्वतन्त्र चयन को सुनिश्चित बनाया गया है तथा आत्मानुशासन के ज्ञान को अविष्कारक बनाया जाएगा, ताकि उनमें राष्ट्र के इतिहास की समझ तेजी से विकसित हो सके और भारत के प्राचीन आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसी उक्ति को साकार करने के लिए विश्व को एक परिवार के रूप में विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि 21वीं शताब्दी में मूल्य आधारित शिक्षा प्रणाली एक सशक्त माध्यम है तथा यह आवश्यक है कि विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों को व्यक्तिगत विकास पर केंद्रित रखा जाए।

मुख्यमंत्री ने डॉ. अजय शर्मा तथा डॉ. राजेश्वर एस. चन्देल द्वारा संयुक्त रूप से लिखित ‘प्लांट प्रोटेक्शन प्रैक्टिसिस इनऑर्गेनिक फार्मिंग’ तथा डॉ. सतीश भारद्वाज, डॉ. आई.पी. शर्मा और डॉ. सुधीर वर्मा द्वारा संयुक्त रूप से लिखित ‘सस्टेनेबल मैनेजमैंट ऑफ माइक्रो-वॉटरशैड रिर्सोसिस ऑफ नार्थ-वैस्ट्रन हिमालयन रीजन’ का विमोचन भी किया।

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