ज्वालामुखी: ज्वालामुखी नगर पंचायत को सम्भालना नये षार्षदों के लिए आसान नहीं है । हालांकि नई टीम के शपथ ग्रहण के बाद नई शुरूआत होगी । लेकिन नगर पंचायत में इस मामले को लेकर अभी से बहस छिड़ गई है । नगर पंचायत इन दिनों मुफलिसी के दौर पर गुजर रही है । गृहकर न बसूल न कर पाने की वजह से सरकार ने पहले ही ग्रांट – इन – एड पहले ही रोक दी है । बस अडडे व पार्किंग से जो राजस्व वसूली हो रही है उससे कर्मचारियों का वेतन भुगतान बमुशिकल हो रहा है । यही नहीं धूमल शासनकाल में प्रदेश में चुंगी वसूली खत्म हुई तो यहां तैनात 12 टोल गार्ड बेकार हो गये । अब उन्हें भी नगर पंचायत को वेतन देना पड़ रहा है । जबकि इनकी जरूरत नहीं है । दफतर में कलर्क,माली ,पलंबर तक सरप्लस हैं ।

तमाम लोग नगर पंचायत की माली हालत बिगाडऩे में सहायक सिद्घ हो रहे हैं । हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि नगर को साफ-सुथरा रखने के लिये तेंनात सफाई कर्मी व उनके लिये साजो समान नहीं मिल पा रहा है । सात वार्डों में दो दर्जन सफाई कर्मी सफाई को दुरूस्त रखने में नाकाफी हैं । जिससे जहां तहां कूढ़े के ढ़ेर दिखाई देते हैं । जिससे विकास कार्यों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है । यही नहीं आमदन के दूसरे स्त्रोत भीकम ही हैं । नगर पंचायत को बस अड्डïे , पार्किंग व दुकानों से जो आमदन हो रही है । उससे तो वेतन भुगतान ही पूरा नहीं हो पा रहा है । भारी- भरकम स्टाफ गले की फांस बन गया है । वहीं ठेकेदारों का लाखों का भुगतान अभी लटका है । बड़ी तादाद में मुकद्यमें कोर्ट- कचहरियों में हैं , जिनकी वजह से भारी – भरकम धन की बर्बादी हो रही है । कांटे भरे ताज को पहनना नये अध्यक्ष के लिए चुनौतीपूर्ण होगा । नगर में चुनाव परिणामों के बाद जिस तरह आपसी लड़ाई झगड़े जितने – हारने वालों के हो रहे हैं उससे भी नगर के आपसी भाईचारे पर विपरीत असर पड़ा है । जो भी हो नगर में सौहार्दपूर्ण महौल कायम करना विजयी उम्मीदवारों की जिम्मेंवारी होगी वही लोग यह भी देखना चाहेंगे कि नये अध्यक्ष व उपाध्यक्ष का चयन का क्या आधार बनता है ।

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