नाहन: देश में एक ओर जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को 141वीं जयंती पर श्रद्वा सुमन अर्पित किए गए, वहीं नाहन शहर में महात्मा गांधी के हत्यारे को पकडने के इतिहास से जुडे परिवार का अपने जांबाज की बहादूरी की पहचान हासिल करने के लिए आंखों में आंसू थे। गौर हो कि नाहन शहर के नगीनों ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई है मगर अफसोस राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे को मौके पर धर दबोचने वाले नाहन के इस नगीने को सरकार ने न जीते जी पहचाना और उनकी मौत के बाद भी उनको कभी याद करने की जहमत नहीं उठाई है। ऐसी ही एक शख्यित के मालिक थे नाहन के मोहल्ला पुरोहित निवासी स्व. देवराज ठाकुर। देवराज ठाकुर की पुत्रवधु सुमित्रा देवी ने खास बातचीत में कहा कि उनके पास उनके ससुर का दिया अशोक चक्र है लेकिन इस अशोक चक्र के सम्मान के लिए सरकार ने उनके परिवार के लिए कुछ नहीं किया है। उन्होंने कहा कि पति राजवर्धन चौहान भी रिजर्व कोटे के तहत नौकरी पाने के लिए उम्र भर सरकार के पीछे भागते रहे लेकिन उन्हें भी नौकरी नहीं मिली। करीब सात साल से यह मसला उठता रहा है लेकिन राष्ट्रपिता के हत्यारे को पकडने वाला जांबाज सिपाही देवराज ठाकुर नाहन का रहने वाला है लेकिन विडंबना है कि उस जांबाज सिपाही को पहचान नहीं मिल पाई। करीब दो साल पहले मौजूदा सरकार ने जांबाज सिपाही का रिकार्ड खंगाला था लेकिन फाइल फिर ठंडे बस्ते में पड गई।

6 फरवरी 2010 को इस परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद उस वक्त जगी थी जब देवराज ठाकुर की पुत्रवधु सुमित्रा देवी व पौत्र विजय ठाकुर ने कालाअंब में अपना दर्द मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल से सांझा किया था। उस वक्त मुख्यमंत्री ने परिवार को कोटे में नौकरी का आश्वासन दिया था साथ ही पुलिस मुख्यालय को देवराज ठाकुर के पौते को नौकरी प्रदान करने के लिए अनुमोदित भी किया था लेकिन पुलिस मुख्यालय ने यह कहते हुए मुख्यमंत्री का अनुमोदन भी ठुकरा दिया था कि पुलिस में विशेष कोटे के तहत नौकरी नहीं प्रदान की जा सकती है। स्व. देवराज ठाकुर जिन्हें आम तौर पर लोग डीआर सिंह कहते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को बिरला मंदिर की प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी पर नत्थू राम गोडसे ने बापू को नमन करने का अभिनय करते हुए उन पर गोलियां दागी थी। उसी वक्त एक नवयुवक ने चीते सी फुर्ती दिखाकर आग उगलती पिस्तौल के साथ उसके चलाने वाले को मौके पर ही धर दबोचा था, वो देवराज ठाकुर ही थे। इस कारनामे के बाद परमवीरता के लिए भारत सरकार की तरफ से उन्हें अशोक चक्र क्लास-2 प्रदान किया गया। 15 अगस्त 1953 को भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा था। ज्ञात रहे कि इस जांबाजी के लिए वायुसेना ने अपने गोल्डन जुबली वर्ष में एक विशेष प्रकाशन में देवराज ठाकुर की जांबाजी की प्रशंसा भी की थी।

अप्रैल 2005 में एक विदेशी पात्रिका ने इस बहादूरी का ताज उडीसा के केंद्र पारा जिला के निवासी रघुनाथ नायक को पहना दिया, बावजूद हिमाचल खामौश रहा। ज्ञात रहे कि गोडसे को पकडने में असल भूमिका निभाने वाले देवराज ठाकुर भारतीय वायुसेना में फलाइट सार्जेंट के पद पर कार्यरत थे। अब देवराज ठाकुर की पुत्रवधु सुमित्रा देवी व पौत्र विजय ठाकुर अपने इस जांबाज की उपलब्धियों की पहचान इस उम्मीद से समेटे हुए है कि शायद कभी प्रदेश सरकार पहचान प्रदान करे। परिवार के पास ठाकुर की जांबाजी से जुडे ठोस सबूत आज भी मौजूद है। परिवार का दर्द यह भी है कि दशकों बीत जाने के बावजूद सरकार का कोई भी अधिकारी इन सबूतों को देखने घर तक नहीं पहंुचा। देवराज ठाकुर की पुत्रवधु सुमित्रा देवी का कहना है कि उनके घर से किसी भी सदस्य को सरकारी नौकरी मिल जाए। उन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि उनके परिवार से किसी भी सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाए।

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