ज्वालामुखी: ‘सुंदरिये मुंदरिये हो दूल्हा भट्ठी वाला हो‘ नामक पांरपरिक गीत को घर-घर सुनाकर बच्चे लोहड़ी मांगने के साथ साथ मकर सक्रांति का संदेश भी देते हैं। लोहड़ी के त्यौहार पर लोहड़ी गीतों का विशिष्ट महत्त्व रहता है। इसके बिना लोहड़ी आधी-अधूरी मानी जाती है, यह लोक गीत हमारी पंरपरा की अमिट पहचान हैं। लडक़ों की अपेक्षा लड़कियों के गीत अधिक मार्मिक और हृदयस्पर्शी होते हैं।

मकर सक्रांति की पूर्व संध्या पर अतीत से ही लोहड़ी मनाने की परंपरा जहां पूरे देश और प्रदेश में प्रचलित है वहीं पर कांगड़ा जिला के धरोहर गांव प्रागपुर में मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व की समूचे उत्तरी भारत में अलग पहचान है। कांगड़ा जिले के परागपुर धरोहर गांव का इतिहास 550 वर्ष पुराना है, जिसका नामकरण तत्कालीन जसवां रियासत की राजकुमारी पराग के नाम पर किया गया था। इस धरोहर गांव की गणना पर्यटन जगत के वियात धरोहर गंतव्य स्थलों में की जाती है, जहां देश के इस प्राचीनतम गांव को देखने के लिए हर वर्ष बड़ी संया में पर्यटक आते हैं।

प्रागपुर की लोहड़ी कालांतर से बड़े परंपरागत ढंग से मनाई जाती है, इस दिन सभी लोग एक जगह एकत्रित होकर लकडिय़ां जलाकर उसके चारों ओर बैठकर खुशी के तराने गुनगुनाते हैं इसके साथ ही सुा समृद्घि और खुशहाली के लिए तिल-चौली बनाना, तिल-अलसी, शक्कर मिश्रित लड्डू बनाना, मक्की के दाणे उबालना प्रसिद्घ है। अग्नि पूजा का लोहड़ी में विशेष महत्व रहता है। अग्नि में लोहड़ी पर बने अनेक पकवान भेंट कर उसे प्रसन्न करके ही बांटने-खाने की परपरा है। इसके साथ ही दूल्हा भट्ठी की कहानी का भी बाखान करते हैं। प्रागपुर की लोहड़ी के प्राचीन महत्व को मध्येनजर राते हुए प्रदेश सरकार द्वारा इसे राज्य स्तरीय मेले का दर्जा प्रदान किया गया है ताकि मेले में सांस्कृतिक इत्यादि गतिविधियों को शामिल करके और आकर्षक बनाया जा सके।

लोहड़ी का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व है स्थानीय भाषा में यह कहावत काफी प्रसिद्घ है कि ‘आई लोहड़ी गया शीत कोढ़ी‘ अर्थात लोहड़ी आने से शीत का प्रकोप कम हो जाता है। इसे खिचड़ी का त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। इस पर्व को दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति और असम में बिहू के नाम से मनाया जाता है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां मानी गयी हैं एवं प्रत्येक राशि में प्रत्येक माह में संक्रमण होता है। ज्योतिष में मकर राशि का स्वामी शनि तथा प्रतीक चिन्ह मकर को माना गया है। हिन्दू धर्म तथा संस्कृति में मकर एक पवित्र जीव है। मकर संक्रान्ति में सूर्य अपना पथ परिवर्तित कर उत्तरायण में प्रविष्ट होते हैं अत: इसे अत्यंत पवित्रा माना जाता है। प्रत्यक्षत: मकर-सक्रान्ति से ऋतु-परिवर्तन रेखांकिंत किया जाता है तथा इसी पावन दिवस से क्रमश: दिन तथा रात्रि के समयमान में परिवर्तन होता है। लोहड़ी का त्यौहार विकराल शीत से राहत पहुंचने का संकेत देता है।

इसे सूर्योपासना का प्रमुख पर्व भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार इसी दिन श्री विष्णु ने असुरों का संहार किया। अन्य शब्दों में उन्होंने नकारात्मक शक्ति का संहार कर सकारात्मक शक्ति की स्थापना इसी दिन की। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन ागीरथ ने गंगा सागर में अपने पितरों का तर्पण किया और इसीदिन स्वर्ग से गंगा पृथ्वी पर आकर सागर से मिली। देवव्रत भीष्म ने इसी अवसर की प्रतीक्षा शरशैया पर की थी और सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्यागे थे।

इस वर्ष यह राज्य स्तरीय मेला धरोहर गांव प्रागपुर में 13 जनवरी को हर्षोल्लास एवं पारंपरिक गरिमा के साथ मनाया जा रहा है। इस मेले को आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न जिलों से सांस्कृतिक दलों को भी आमंत्रित किया गया है इसके अतिरिक्त मेले में विद्युत आपूर्ति, पेयजल और कानून एवं व्यवस्था बनाने के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं।

अत: कहा जा सकता है कि लोहड़ी का पर्व अपना ऐतिहासिक, नैतिक, सामाजिक, धर्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व राता है। यह पर्व सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारे और खुशहाली का संदेश भी देता है जिससे राष्ट्र की एकता और आंडता को बल मिलता है।

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2 Comments

  1. बहुत अच्छी रोचक जानकारी प्रस्तुति हेतु धन्यवाद
    लोहड़ी, मकर संक्रान्ति व उत्तरायणी की हार्दिक शुभकामनायें

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