सिरसा : यदि इंसान में दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो वह हर मंजिल को पा लेता है। सिरसा के शिव चौक के पास रहने वाले 68 वर्षीय बस्तीराम बरोड़ भी दृढ़ इच्छाशक्ति से लबरेज हैं। इसी का कारण है कि 68 साल के होने के बावजूद वे पढ़ाई का दामन नहीं छोड़ रहे हैं। इस उम्र में आदमी जहां अपने पोते-पोतियों के साथ समय व्यतीत करता है या फिर अपने वृद्ध साथियों के साथ बीत चुकी जिंदगी की समीक्षा करता रहता है वहीं बस्ती राम इन सबसे दूर अपने से आधी से भी कम उम्र के छात्र-छात्राओं के साथ पढ़ाई करने में लगे हुए हैं। उन्होंने सिरसा के चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में एमए प्रथम वर्ष में दाखिला लिया है।

जीवन भर नहीं छोड़ा किताबों का साथ

बस्ती राम बरोड़ ने अपना जीवन किताबों को समर्पित कर दिया। वर्ष 1963 में ग्यारहवीं करके आर्मी में बतौर क्लर्क पांच वर्ष कार्य करने के बाद उन्होंने ओरंगाबाद के खिड़की में घडिय़ों के टेक्रिशियन के रूप में काम किया। उसके बाद उन्होंने वर्ष 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय से दूरवर्ती शिक्षा के माध्यम से स्नातक पूर्ण की। फिर इन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से राजनीतिक शास्त्र में अपनी स्नातकोत्तर की शिक्षा पूर्ण की। इतने पर भी इनका साहस कम न हुआ जिसके बाद इन्होंने 1981 में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर तथा 1984 में एलएलबी की भी डिग्रीयां हासिल कर ली। इतना सब हासिल करने के बाद वे 1986 से लेकर 1998 तक जिला समाज कल्याण अधिकारी के पद पर कार्य करके सेवानिवृत्त हो गए।

बचपन में गरीबी ने पढऩे से रोका

मूल रूप से डबवाली के गांव बिज्जूवाली के रहने वाले बस्तीराम ने बचपन की याद ताजा करते हुए कहा कि मेरा परिवार बहुत गरीब था। मेरे पिता जैसाराम मुझे पढऩा चाहते थे लेकिन, पैसे की तंगी की वजह से मैं पढ़ न सका। आर्मी में नौकरी करने के बाद कमाए गए पैसों से मैनें अपनी अधूरी शिक्षा पूर्ण की। आज शिक्षा को अपना सच्चा साथी बनाकर मैनें अपने पिता के सपने को साकार कर दिया है।

आयुर्वेदिक पद्धति द्वारा कृषि को बढ़ावा देने के लिए पत्रकारिता की पढ़ाई

बस्तीराम का कहना है कि देश का किसान गरीब है। उसे परंपरागत खेती की बजाय आधुनिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए। गांव बिज्जूवाली में पड़ी अपनी दो कील्हे की जमीन पर वे आयुर्वेदिक पद्धति से खेती कर रहें हैं। उनका कहना है कि पत्रकारिता एक जरिया है जिससे वे अपने इन विचारों को व आयुर्वेदिक पद्धति को जन-जन तक पहुंचा सकते हैं। उनका लक्ष्य पत्रकारिता विषय में पीएचडी करना है। ताकि वे आयुर्वेदिक पद्धतियों द्वारा कृषि कैसे की जाए पर रिसर्च कर सकें।

कई बार आई चुनाव लडऩे की पेशकश

उन्होंने अपने जीवन के उन पलों को भी हमसे सांझा किया जब उन्हें कई राजनीतिक नेताओं ने चुनाव लडऩे की पेशकश की। उन्होंने बताया कि जनता दल के नेता व पूर्व मंत्री रह चुके बलवंत राय तायल व पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने उन्हें चुनाव लडऩे की पेशकश की थी । लेकिन परिस्थितियां अनुकूल न रहने की वजह से वे चुनाव नहीं लड़ पाए।

परिवार से अब भी मिलती है पढऩे की प्रेरणा

बस्ती राम का कहना है कि इतनी उम्र हो जाने के बाद भी उनका परिवार अभी भी उन्हें और पढऩे की प्रेरणा दे रहा है। उनके परिवार में कुल 8 सदस्य हैं। जिनमें उनकी सबसे छोटी बेटी पोलिटेक्रनीक की पढ़ाई कर रही है। उन्हें पढ़ता देखकर उनका परिवार का हर सदस्य गौरवान्वित महसूस करता है। ताउम्र पढ़ाई को समर्पित बस्तीराम का जीवन उन लोगों के लिए सीख है जो साधनों के अभाव में शिक्षा से किनारा कर लेते हैं।

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