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अर्की में समकालीन साहित्य में विविध विमर्शों पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

सोलन: राजकीय महाविद्यालय अर्की में समकालीन साहित्य में विविध विमर्शों  पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।  इस संगोष्ठी में विविध विमर्शों पर चर्चा करने के लिए लघु भारत का दृश्य देश के विभिन्न राज्यों के महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों एवं केंद्रीय विश्वविद्यालयों मुख्य रुप से (जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली, जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय दिल्ली,  डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली, दिल्ली यूनिवर्सिटी दिल्ली, केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतीहारी बिहार, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश धर्मशाला, छत्तीसगढ़ , कर्नाटक, पंजाब पश्चिम बंगाल के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश के विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों) से आए प्रोफेसर एवं शोधार्थियों  के शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए दिखाई दिया। 

संगोष्ठी में किन्नर विमर्श (ट्रांसजेंडर विमर्श), दलित विमर्श, स्त्री विमर्श,  वृद्ध विमर्श,  पर्यावरण विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श तथा अन्य समकालिक विमर्शों पर विस्तृत चर्चा की गई।  संगोष्ठी में उद्घाटन सत्र एवं समापन सत्र के अतिरिक्त चार तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिसमे सौ से अधिक प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिभागिता सुनिश्चित की तथा सत्तर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए । संगोष्ठी की संरक्षक महाविद्यालय प्राचार्या  सुनीता शर्मा रही तथा संयोजक (समन्वयक) के रूप में हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राजन तनवर ने अहम भूमिका निभाई ।

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उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के दिल्ली केंद्र की क्षेत्रीय निदेशक प्रोफेसर अर्पणा सारस्वत रही। बीज वक्ता के रूप में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार से प्रोफेसर राजेंद्र सिंह बडगूजर, मुख्य वक्ता के रूप में अर्की क्षेत्र के बातल गांव से संबद्ध तथा समीक्षा एवं आलोचना के क्षेत्र में भारतीय साहित्य पटल पर अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके डॉक्टर हेमराज कौशिक ने अहम भूमिका निभाई । 

प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता राजकीय महाविद्यालय राजगढ़ के प्राचार्य डॉक्टर राजेंद्र वर्मा ने की इस सत्र में वक्ता के रूप में डॉ अमित धर्म सिंह,  डॉक्टर सत्यनारायण स्नेही प्रोफेसर वंदना श्रीवास्तव तथा डॉ वीरेंद्र सिंह रहे। द्वितीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सह आचार्य  डॉक्टर भवानी सिंह रहे इसके अतिरिक्त डॉ संदीप तथा डॉक्टर रघुवीर ने वक्ता के रूप में  अपनी भूमिका निभाई। 

तृतीय तकनीकी सत्र की अध्यक्षता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉक्टर शोभा रानी ने की। वक्ता के रूप में सेवानिवृत प्रोफेसर डॉक्टर बलदेव सिंह ठाकुर रहे। चतुर्थ तकनीकी सत्र की अध्यक्षता कर्नाटक से आए एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर दीपा रागा ने की वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ के मुकधर शासकीय महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शिवदयाल पटेल तथा राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला के सहायक आचार्य डॉक्टर संतोष ठाकुर रहे। चारों तकनीकी छात्रों में सत्तर शोध पत्र प्रस्तुत कर्ताओं ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। 

समापन सत्र के मुख्य अतिथि हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तथा सेतु पत्रिका के संपादक डॉक्टर देवेंद्र कुमार गुप्ता ने की। मुख्य वक्ता के रूप में हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला की प्रोफेसर चंद्रकांत सिंह रहे,  विशिष्ट वक्ता के रूप में  धनंजय चौहान रही जो की पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ की प्रथम ट्रांसजेंडर छात्रा हैं तथा वर्तमान समय में  किन्नर जाति के उत्थान, उनके अधिकारों, उनकी पीड़ाओं, समस्याओं की लड़ाई लड़ रही है।

श्रद्धेय धनंजय चौहान के साथ पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से ही एल एल एम की पढ़ाई कर चुकी करण किन्नर तथा विषीप्रीत किन्नर रही जोकि वर्ष 2019 में मिस कानपुर का खिताब जीत चुकी हैं तथा मॉडलिंग भी करती हैं।  धनंजय किन्नरों को अधिकार दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने का जज्बा पाले हुए कार्य कर रही हैं। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में सभी विभागों में किन लोगों के लिए एक सीट आरक्षित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है जिससे किन्नर पढ़ सके तथा अपनी आजीविका के लिए प्रतिष्ठित पदों पर आसीन हो सकें।

संगोष्ठी संरक्षक एवं महाविद्यालय प्राचार्या सुनीता शर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि अर्की महाविद्यालय के इतिहास में यह पहला अवसर है जब राष्ट्रीय स्तर का सम्मेलन महाविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है जिसमें लघु भारत का दृश्य वास्तव में देखने को मिला। उन्होंने आगे कहा कि इस संगोष्ठी में प्रतिभागियों की उपस्थिति ने महाविद्यालय को साहित्यिक सुगंध से गुलजार कर दिया है। 

संगोष्ठी संयोजक डॉ राजन तनवर ने कहा कि यह संगोष्ठी महाविद्यालय के विद्यार्थियों को अत्यंत लाभप्रद रहेगी,  इस विचार विमर्श के माध्यम से विद्यार्थी यह जान पाएं कि समकालीन साहित्य वास्तव में विमर्शों का साहित्य है । वर्तमान समय में विमर्शवादी साहित्य ही अपनी विशेष पहचान बनाए हुए लिखा और पढ़ा जा रहा है। स्वानुभूति की पीड़ा इस साहित्य का आधार है।