जन्माष्टमी विशेष: नाहन का प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर, जानें इसकी अनसुनी कहानियाँ

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By पंकज जयसवाल

नाहन : प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर शहर की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान का अहम हिस्सा है। नाहन के पूर्व विधायक कंवर अजय बहादुर ने हिल्स पोस्ट मीडिया से विशेष बातचीत में बताया कि यह मंदिर महाराजा भू प्रकाश के शासनकाल (1703 से 1713) के दौरान, लगभग वर्ष 1708 से 1710 के बीच बनवाया गया था। महाराजा भूप्रकाश के शासनकाल में नाहन राजधानी हुआ करती थी और उसी समय यहां भक्तों की आस्था के लिए कई प्रमुख मंदिर बनाए गए।

उन्होंने बताया कि लक्ष्मी नारायण मंदिर भगवान विष्णु के लक्ष्मी-नारायण स्वरूप को समर्पित है। इस मंदिर में उन भक्तों की विशेष उपस्थिति रहती थी, जो भगवन विष्णु की कृष्णा नारायण रूप की पूजा करते थे। उस दौर में, शिव भक्तों के लिए अलग-अलग शिवालय, शक्ति उपासकों के लिए काली मंदिर और हनुमान भक्तों के लिए हनुमान मंदिर भी बनाए गए। इस तरह, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए अलग-अलग पूजा स्थलों का निर्माण कर शहर को एक धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया।

नाहन का प्राचीन लक्ष्मी नारायण मंदिर

कंवर अजय बहादुर ने बताया कि लगभग 100 वर्ष बाद, वर्ष 1807 के आसपास, नेपाल से आए गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा और उनके पुत्र राणजोड़ थापा ने नाहन पर कब्जा कर लिया। राणजोड़ थापा, जो बाद में नाहन के गवर्नर बने, ने इस मंदिर की मरम्मत करवाई और इसकी संरचना को संरक्षित रखने में अहम भूमिका निभाई।

मंदिर की परंपराओं के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि रियासत काल में लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थापित गोविंद जी कृष्ण की प्रतिमा का विशेष महत्व था। गोवर्धन पूजा के दिन इस प्रतिमा को बड़ी श्रद्धा और शाही ठाठ-बाट के साथ भव्य शोभायात्रा में सजाया जाता था। ढोल-नगाड़ों और शंखध्वनि के बीच पालकी को राजमहल ले जाया जाता था। राजमहल पहुंचने पर वहां विशेष वेदिक मंत्रोच्चारण और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ प्रतिमा का विधिवत पूजन किया जाता था।

कंवर अजय बहादुर ने बताया कि नाहन का मुख्य धार्मिक आयोजन वामन द्वादशी का पालना उत्सव है। इस अवसर पर मंदिर से सजे-धजे पालनो की विशेष पालकी यात्रा निकाली जाती है, जिसे श्रद्धालु पूरे उत्साह से नगर के विभिन्न मार्गों से होकर ले जाते हैं। यात्रा के दौरान पालनो को पक्का टैंक तालाब में नौका विहार भी कराया जाता है, जो इस आयोजन का विशेष आकर्षण होता है।

उन्होंने बताया कि रियासत काल से ही पालना उत्सव का क्रम निश्चित हुआ करता था। सबसे पहले नरसिंह देव (नौनी का बाग) का पालना, उसके बाद लक्ष्मी नारायण मंदिर का पालना और फिर अन्य मंदिरों के पालने निकलते है । यह परंपरा समय के साथ आज भी कायम है, हालांकि भव्यता में कुछ बदलाव आया है। इसके बावजूद वामन द्वादशी का आयोजन आज भी नाहन के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रमुख केंद्र है।

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पंकज जयसवाल

पंकज जयसवाल, हिल्स पोस्ट मीडिया में न्यूज़ रिपोर्टर के तौर पर खबरों को कवर करते हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 2 वर्षों का अनुभव है। इससे पहले वह समाज सेवी संगठनों से जुड़े रहे हैं और हजारों युवाओं को कंप्यूटर की शिक्षा देने के साथ साथ रोजगार दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।