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रोजगार, जलवायु परिवर्तन और स्थिरता पर प्राकृतिक खेती के प्रभाव

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सोलन: सतत टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को सक्षम बनाने के लिए प्राकृतिक खेती विषय पर डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी द्वारा आयोजित दो दिवसीय आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन विभिन्न सिफारिशों के साथ संपन्न हुआ। राष्ट्रीय कृषि, खाद्य और पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (INRAE) और भारतीय पारिस्थितिकी सोसायटी के हिमाचल चैप्टर के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में भारत, फ्रांस, सर्बिया, यूके, मॉरीशस, उज़्बेकिस्तान और नेपाल के वैज्ञानिक, किसान और उद्योग के पेशेवर एक साथ एक मंच पर प्राकृतिक कृषि जैसे पर्यावरण हितैषी कृषि पद्धतियों पर विचार मार्श करने के लिए एक मंच पर आए।

उत्तराखंड बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, भडसार के कुलपति डॉ. परविंदर कौशल समापन सत्र में कुलपति रहे। डॉ कौशल ने पोषण सुरक्षा के लिए प्राकृतिक खेती के महत्व और इस पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धति को बढ़ावा देने में शिक्षा और उद्योग की भूमिका पर जोर दिया। नौणी विवि के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने प्राकृतिक खेती के लिए एक स्थायी खाद्य प्रणाली मंच विकसित करने में विश्वविद्यालय के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने और मिट्टी, वायु और पानी के स्वास्थ्य को बढ़ाने में प्राकृतिक खेती के लाभों को रेखांकित किया, जो बदले में उपभोक्ता स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।

awards to delegates

फ़्रांस की लिसिस लैब की उप निदेशक प्रोफेसर एलीसन लोकोन्टो ने एक्रोपिक्स परियोजना से अंतर्दृष्टि साझा की और आशा व्यक्त की कि भारत सहित विभिन्न देशों की स्थायी प्रथाओं को विश्व स्तर पर दोहराया जा सकता है। आईसीएआर के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. राजबीर सिंह ने जलवायु परिवर्तन को कम करने में प्राकृतिक खेती की क्षमता पर जोर दिया और देश के 732 कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आईसीएआर की पहल के बारे में विस्तार से बताया।

टिकाऊ खाद्य प्रणालियों में नवाचारों पर चर्चा ने एकीकृत कृषि प्रणालियों को बढ़ाने में आईओटी प्रौद्योगिकी और फार्म टाइपोलॉजी ढांचे की भूमिका को रेखांकित किया। ये प्रौद्योगिकियाँ भूमि विखंडन और जलवायु भेद्यता जैसी चुनौतियों का स्थायी समाधान प्रदान करती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा, लचीलापन और कृषि उत्पादकता में सुधार होता है।

पैनल चर्चाओं में कीटनाशक मुक्त कृषि प्रणाली प्राप्त करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की आवश्यकता पर आम सहमति सामने आई। विशेषज्ञों ने बताया कि इस लक्ष्य के लिए विविध हितधारकों को शामिल करते हुए नवीन अनुसंधान और प्रणालीगत परिवर्तन दोनों महत्वपूर्ण हैं।

सतत खाद्य प्रणालियों में नवाचार सत्र के दौरान चर्चा की गई ASIRPA TR विधि को एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण के रूप में उजागर किया गया था जो लक्ष्यों को स्पष्ट करता है, साझेदारी को परिष्कृत करता है और प्रभावशाली परिवर्तन के लिए सक्रिय रणनीतियों को बढ़ावा देता है।

कृषि पारिस्थितिकी प्रथाओं को बेहतर बनाने में शिक्षा जगत, उद्योग और किसानों की भूमिकाओं पर एक पैनल चर्चा में कई प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया। डॉ. मनीष कुमार, डीन सीओएच नौणी ने स्थानीय फसल विविधता और पारंपरिक ज्ञान को पहचानने के महत्व पर जोर दिया। सिंजेंटा के डॉ. यशवंत पाटिल ने जैव-उत्तेजक, जैव-उर्वरक और जैव-कवकनाशी विकसित करने में उद्योग की भूमिका पर चर्चा की। प्राकृतिक कृषि तंत्र एलएलपी, पुणे के सुजीत कुमार चक्रवर्ती ने कृषि पंचांग को कृषि पाठ्यक्रम में एकीकृत करने की वकालत की।

खेती विरासत मिशन पंजाब के उमेंद्र दत्त ने चावल और गेहूं की फसलों से परे व्यापक खाद्य सुरक्षा संवाद की आवश्यकता पर बल दिया। प्रगतिशील सेब उत्पादक जित्तू चौहान और किसान जीवन सिंह राणा ने नए किसानों को प्रशिक्षण देने में ऑनलाइन शिक्षा और सफल किसान भागीदारी के महत्व पर प्रकाश डाला। डीडीजी शिक्षा डॉ. आरसी अग्रवाल ने छात्र-किसान जुड़ाव बढ़ाने के लिए मोबाइल एप्लिकेशन-आधारित RAWE कार्यक्रमों को एकीकृत करने का आह्वान किया।

सम्मेलन का समापन खाद्य जीविका और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए प्राकृतिक खेती में नवाचारों को आगे बढ़ाने पर एक पैनल चर्चा के साथ हुआ। CIRAD, फ्रांस के वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ. ब्रूनो डोरिन ने आंध्र प्रदेश के भविष्य के परिदृश्यों पर अंतर्दृष्टि प्रस्तुत की। सिफारिशों में भोजन की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार करने, 5 मिलियन किसानों के लिए रोजगार पैदा करने और बेरोजगारी को 30% से 7% तक कम करने के लिए प्राकृतिक खेती की क्षमता के बारे में बात की गई। जतन ट्रस्ट के डॉ. कपिल शाह ने कृषि इनपुट के आधार पर उपज को मापने की आवश्यकता पर जोर दिया, जबकि सेंट औबिन ग्रुप, मॉरीशस के डॉ. अलीज़ी गुइम्ब्यू ने मॉरीशस में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने के लिए शैक्षिक पहल का आह्वान किया।

डॉ राकेश शर्मा ने सभी सत्रों की सिफ़ारिशें जबकि डॉ सुधीर वर्मा ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान डॉ संजीव चौहान, निदेशक विस्तार शिक्षा डॉ इंदर देव और डॉ प्रदीप कुमार भी मौजूद रहे। सम्मेलन ने प्राकृतिक कृषि पद्धतियों में सार्थक प्रगति के लिए मंच तैयार किया, जिससे बढ़ी हुई स्थिरता, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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