वोट बैंक के लगातार खिसकने का नोटिस नहीं ले पाई कांग्रेस

(एस.आर.पुण्डीर) नाहन।  रेणुका उपचुनावों मे हुइ करारी हार को यहां के कांग्रेसी पचा नहीं पा रहे हैं। पचे भी कैसे! आजादी के बाद पहली बार भाजपा ने कांग्रेस के उस पुश्तैनी गढ़ को तोड़ा है जिसकी नींव हिमाचल निर्माता स्व0 डा0 यशवन्त सिंह परमार ने रेणुका को अपना चुनाव क्षेत्र बना कर रखी थी। अब हताश कांग्रेसी भाजपा पर चुनाव के दौरान गड़बड़ियों के ताबड़तोड़ आरोप लगा रहे हैं तथा अदालत मे जाने की धमकी दे रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कौल सिंह ठाकुर ने एक जांच समिति बिठा कर हार के कारणों का एक माह मे पता लगाने का आदेश दिया है।

यहां राजनैतिक विश्लेश्कों के अनुसार रेणुका मे कांग्रेसियों को उनका अतिविश्वास ही गच्चा दे गया जिस कारण रेणुका क्षेत्र मे लगातार खिसकते अपने जनाधार को कांग्रेसी सही परिपेक्ष्य मे पहचान ही नहीं पाये।

रेणुका मे अपनी जीत पक्की मानने वाले कांग्रेसियों तथा कांग्रेस के गढ़ को भेदने के लिए हर हथियार आजमाने वाले भाजपाइयों, दोनो दलों के प्रचार के अपने अपने अलग तरीके चुनाव प्रचार के दौरान देखने मे आये। जहां कांग्रेसी कार्यकर्ता अपने प्रत्याशी विनय कुमार को जिताने के लिए वीरभद्र सिंह सरीखे नेताओं की चुनावी रैलियों को सफल बनाने तथा गांव मे जा कर एक स्थान पर अपना प्रचार कार्यक्रम आयोजित करने की चुनाव प्रचार की अपनी पुरानी नीति को ही मुख्यतः आगे बढ़ाते रहे वहीं अत्यन्त सावधानी से बनाइ गइ अपनी चुनावी रणनीती के तहत भाजपा के मन्त्री व नेता लोगों मे अपनी पैठ बनाने के लिए घर घर गये। रेणुका के चुनावों पर नजर रखने वाले राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यही एक ऐसा पैंतरा था जिसनेे प्रचार मे भी कांग्रेस को बेकफुट पर कर दिया था।

कांग्रेस नहीं भांप पाइ खिसकता जनाधारः हिमाचल निर्माता स्व0 डा0 यशवन्त सिंह परमार की कर्मभूमी व उनके चुनाव क्षेत्र रहे रेणुका मे 1990 से 1993 के बीच का समय निकाल दिया जाये जब वहां से जनता दल के रूपसिंह ने कांग्रेस के डा0 प्रेम सिंह को हरा कर इस सीट पर कब्जा किया था, तो आजादी के बाद आज तक इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। पूर्व कांग्रेस विधायक स्व0 डा0 प्रेम सिंह रेणुका से छः बार जीत कर प्रदेश विधानसभा मे पहुंचे थे।

रेणुका से 2007 के विधानसभा चुनाव मे कांग्रेस के स्व0 डा0 प्रेम सिंह भाजपा के बलबीर सिंह को 3279 मतों से हरा कर जीते थे मगर 2009 मे हुए लोगसभा चुनाव मे यहां से भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र कश्यप 3885 मतों की बढ़त ले गये थे। हाल ही मे सम्पन्न हुए पंचायतीराज चुनावों मे क्षेत्र की अधिकांश पंचायतों, जिला परिषद की तीनों सीटों पर तथा संगड़ाह बीडीसी पर भी भाजपा का कब्जा हो चुका है। जिसने भाजपा को वहां एक नया उत्साह दिया।

राजनैतिक विश्लेश्कों के लिए यह हैरत की बात है कि इतना सबकुछ होने के वावजूद रेणुका मे खिसकते अपने जनाधार को सही ढ़ंग से कांग्रेसी नहीं पहचान पाये। लोकसभा चुनावों में भाजपा की बढ़त को कांग्रेसी राष्ट्रीय मुद्दों से जोड़ते रहे जबकि क्षेत्र मे पंचायतीराज चुनावों मे हुइ कांग्रेस की करारी हार को भी कांग्रेसी प्रदेश सरकार के पंचायतों पर प्रभाव से जोड़ते रहे तथा कहते रहे कि इन बातों का विधानसभा चुनावों पर कोई असर नहीं होगा। विश्लेश्कों के अनुसार कांग्रेस के अतिविश्वास का तीसरा कारण यह था कि कांग्रेसी पूर्व विधायक व भाजपा नेता (अब कांग्रेस मे) रूपसिंह तथा भाजपा के दो बार चुनाव हार चुके रेणुका के प्रत्याशी बलबीर सिंह को कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व0 डा0 प्रेम सिंह के मुकाबले कमजोर प्रत्याशी मानते थे। इन कारणों से विधानसभा चुनावों मे कांग्रेसी कार्यकर्ता अपनी जीत पक्की मानते थे। मगर वक्त ने पलटा खाया न डा0 प्रेम सिंह रहे न ही मैदान मे भाजपा के पुराने व पिटे हुए मोहरे रहे। भाजपा ने नये व शिक्षित प्रत्याशी हृदयराम को मैदान मे उतार कर रेणुका कांग्रेस के सारे राजनैतिक गणित फैल कर दिये।

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