पंकज जयसवाल

धारटीधार का दग्योन, यहां बाबा की कृपा बरसती है

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नाहन : सिरमौर जिला के धारटीधार क्षेत्र का दग्योन बाबा जी की कृपा और मनोकामना पूर्ति के लिए दशकों से जाना जाता है। दग्योन वाले बाबा जी के नाम से पहचाने जाने वाले सिद्ध योगी संत ब्रह्मलीन श्री प्यारा नंद जी यहां साधना करते थे। मान्यता है कि यहां शिवालय के दर्शन मात्र से मनोकामना पूरी होती है, और यहां बाबा की कृपा बरसती है। यहां का शिवालय धार्मिक आस्था और पौराणिक मान्यताओं का एक प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण भगवान शिव के साक्षात दर्शन और महात्मा ब्रह्मलीन श्री प्यारा नंद जी की शिव भक्ति से जुड़ी घटनाओं पर आधारित है। मान्यता है कि भगवान शिव ने महात्मा प्यारा नंद जी को न केवल दर्शन दिए बल्कि उनके साथ एक रात बिताकर प्रसाद ग्रहण किया और मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी।

पौराणिक कथा

कहा जाता है कि एक रात भगवान शिव ने सफेद कपड़े धारण किए हुए महात्मा प्यारा नंद जी की कुटिया में प्रवेश किया और उनसे वहीं रुकने की जिद की। महात्मा ने उन्हें कुटिया के प्रांगण में ठहराया और चावल, शक्कर और घी का प्रसाद दिया। प्रसाद ग्रहण करने के बाद भगवान शिव ने अपनी थाली स्वयं साफ की, लेकिन महात्मा ने उन्हें सही तरीके से खाने और थाली धोने का निर्देश दिया। अगली सुबह भगवान शिव ने महात्मा को अपना असली रूप दिखाया और शिव मंदिर स्थापित करने का आदेश दिया। इसके बाद भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए।

dhartidhar dagyon

मंदिर का निर्माण

इस घटना के बाद नजदीकी गांव के लोग इकट्ठा होने लगे और मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ। महात्मा प्यारा नंद जी के मार्गदर्शन में स्थानीय राजमिस्त्रियों ने मंदिर का निर्माण किया। आज यह शिवालय (आश्रम ) धार्मिक आस्था का प्रमुख स्थल बन चुका है, और दूर-दूर से भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।

महात्मा प्यारा नंद जी की यात्रा

महात्मा प्यारा नंद जी हरियाणा के अंबाला जिला के जंडली गांव के निवासी थे। बचपन से ही उन्हें शिव भक्ति का विशेष लगाव था। अपने पैतृक गांव से निकलने के बाद वे हिमाचल प्रदेश की शिवालिक पहाड़ियों में तपस्या करने के लिए आ गए। उन्होंने नाहन के पास आमवाला गांव में शिवलिंग स्थापित किया और फिर पौड़ीवाला मंदिर में भगवान शिव की तपस्या की। इसके बाद, धारटीधार के भांभी बनोत गांव में पांच साल तक तपस्या करने के बाद, वे दग्योन पहुंचे और यहां एक कुटिया में भगवान शिव की आराधना की।

धार्मिक मान्यता

मान्यता है कि यहां भगवान शिव प्रत्येक श्रद्धालु की मनोकामना पूरी करते हैं। इस स्थान की महिमा और आध्यात्मिक शक्ति के कारण यह दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। हर साल शिवरात्रि, श्रावण और माघ महीने के सोमवार को यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और लंबी कतारों में जलाभिषेक के लिए भक्त खड़े रहते हैं। यहां हर साल गुरु पूर्णिमा और शिवरात्रि पर जागरण भी होता है।

इस आश्रम में प्रवेश करते ही एक विशेष अनुभूति का अनुभव होता है, जो मन को शांति और सुकून से भर देती है। यहां की हवा में एक सकारात्मक ऊर्जा महसूस होती है, जो व्यक्ति के अंदर नई शक्ति का संचार करती है। आश्रम का वातावरण अत्यंत खूबसूरत और शांतिपूर्ण है, और यहां सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। जगह-जगह पर पानी की व्यवस्था और सुंदर फूलों की क्यारियां आश्रम की शोभा को और भी बढ़ा देती हैं, जिससे यहाँ का वातावरण और भी आकर्षक हो जाता है।

रविवार का दिन आश्रम में आने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, इस दिन यहां विशेष भंडारे का आयोजन होता है। स्थानीय लोग भी यही सलाह देते हैं कि रविवार को ही आश्रम में आएं, यहां के भंडारे का प्रसाद ग्रहण करें और आश्रम की विशेष ऊर्जा का अनुभव करें। आश्रम का यह माहौल भक्तों के दिलों में असीम शांति और सुकून का अनुभव कराता है, जो उन्हें बाहरी दुनिया की हलचल से दूर ले जाता है।

आश्रम का विकास

स्वामी प्यारा नंद जी 30 नवंबर 1994 को ब्रह्मलीन हो गए। उसके बाद उनके शिष्य के शिष्य बाल बह्रमचारी स्वामी बाला नंद जी महाराज ने पूजा अर्चना की परंपरा तथा आश्रम के विस्तारीकरण का कार्य जारी रखा और आज भी आश्रम का संचालन कर रहे हैं ।  

धारटीधार का यह शिवालय केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं है, बल्कि यहां पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, साहित्यकार, और पत्रकार भी जुड़े रहे हैं। उनके प्रयासों और योगदान के कारण इस स्थल की ख्याति दूर-दूर तक फैली है। यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है, और इसके धार्मिक महत्व के कारण यहां हर साल हजारों भक्त आते हैं, जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की आशा रखते हैं।

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