शिलाई के सुरेंद्र हिंदुस्तानी, संघर्ष से सफलता तक का सफर, रोजगार की खोली राह

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नाहन: वर्तमान समय में जब देश और प्रदेश में रोजगार की स्थिति गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। शिलाई के सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने सिरमौर के युवाओं के लिए रोजगार की राह खोल रखी है। सुरेंद्र हिंदुस्तानी युवाओं को न केवल प्रेरित करते हैं, बल्कि उन्हें रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराते हैं। सुरेंद्र हिंदुस्तानी मूलतः सिरमौर जिला के शिलाई क्षेत्र के निवासी है। वे युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी हैं, जिन्होंने अपने संघर्ष और समाज सेवा के माध्यम से न केवल खुद को स्थापित किया, बल्कि सैकड़ों युवाओं को आत्मनिर्भर बनने का मार्ग भी दिखाया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
सुरेंद्र हिंदुस्तानी का जन्म शिलाई (जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश) के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। उनके पिता ने उन्हें मेहनत, ईमानदारी और परिश्रम के महत्व को समझाया। सुरेंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिलाई के स्कूल से प्राप्त की, लेकिन स्टाफ की कमी के कारण उन्हें अपनी दसवीं की पढ़ाई के लिए माजरा स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। इसके बाद उन्होंने नाहन कॉलेज से बी.कॉम की पढ़ाई की। इस दौरान उन्होंने जीवन की कठिनाइयों से भी संघर्ष करना शुरू कर दिया था, जो उनकी आगे की यात्रा में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

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करियर की शुरुआत:
सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने अपने करियर की शुरुआत 1990 में गाजियाबाद स्थित श्री गंगा पेपर मिल में एक साधारण श्रमिक के रूप में की थी। यहां उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें कुछ समय बाद उसी पेपर मिल में अकाउंटेंट के पद पर पदोन्नति दिलाई। उन्होंने इस कंपनी में चार साल तक काम किया, जहां उन्होंने न केवल अपनी कार्यक्षमता दिखायी, बल्कि संगठन के भीतर एक मजबूत पहचान बनाई।

सिरमौर लौटने का संघर्ष
सिरमौर लौटने पर सुरेंद्र ने अपने इंडस्ट्री के अनुभव का उपयोग करने की कोशिश की, लेकिन दुर्भाग्यवश मालवा कॉटन और रेनबैक्सी जैसी बड़ी कंपनियों में उन्हें नौकरी नहीं मिल पाई। इसके बाद, उन्होंने सतौन में कंप्यूटर एजुकेशन की शुरुआत की, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कंप्यूटर के प्रति जागरूकता की कमी के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो सका। जीवन की कठिनाइयाँ बढ़ती गई और उन्हें परिवार का पालन-पोषण करने के लिए खदान में भी काम करना पड़ा।

हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे अपनी मेहनत से एक नई दिशा की ओर बढ़ते गए। उनके मित्र विपिन गुप्ता ने उन्हें नाहन आने और काम शुरू करने की सलाह दी, जिससे उनकी किस्मत बदल गई।

नाहन में नई शुरुआत
1998 में नाहन आने के बाद सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने शिवालिक इंडस्ट्रीज में अकाउंटेंट के रूप में काम शुरू किया। वहीं, उन्होंने छोटे व्यापारियों और उद्योगों के लिए अकाउंट्स का काम करना भी शुरू किया। उनकी ईमानदारी और कार्य में निपुणता ने उन्हें शीघ्र ही पहचान दिलाई और उनका काम तेजी से फैलने लगा। 2003 में कालाअंब में इंडस्ट्रियल पैकेज लागू होने के बाद उन्होंने अपनी सेवाओं का विस्तार किया। इसी दौरान उन्होंने देहरादून से वकालत की पढ़ाई पूरी की और 2005 में हिमाचल प्रदेश में बतौर वकील एनरोल हो गए।

युवाओं को मार्गदर्शन
सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने अपनी वकालत के साथ-साथ युवाओं को रोजगार दिलाने का बीड़ा भी उठाया। वे न केवल अपने ऑफिस में युवाओं को फ्री में प्रशिक्षित करते हैं, बल्कि उन्हें स्थानीय उद्योगों में काम दिलवाने का प्रयास भी करते हैं। उनके मार्गदर्शन में अब तक 500 से अधिक युवा स्थानीय उद्योगों में काम कर रहे हैं और आत्मनिर्भर बन चुके हैं। यह उनकी कड़ी मेहनत और युवाओं के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

समाज सेवा में योगदान
सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने रोजगार सृजन के साथ-साथ समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वे कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और इन संगठनों में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। वर्तमान में, वे आठरी माता शिलाई समिति के अध्यक्ष, चूड़ेश्वर सेवा समिति नाहन के लंबे समय तक अध्यक्ष, हाटी समिति के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। खेलकूद के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण वे बैडमिंटन एसोसिएशन के सचिव (पूर्व) भी रह चुके हैं। उनका यह बहुआयामी योगदान उनके नेतृत्व और समाज सेवा के प्रति समर्पण को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।


सुरेंद्र हिंदुस्तानी ने 2007 से 2022 तक हर साल सिरमौर के सरकारी स्कूलों के गरीब बच्चों को 200 स्वेटर वितरित किए। यह पहल उन्होंने नाहन के हरिपुर मोहल्ला के एक स्कूल से शुरू की थी। वहां उन्होंने महसूस किया कि ठंड के मौसम में गरीब बच्चों को गर्म कपड़ों की आवश्यकता है। उनकी यह मदद उनके परोपकार की भावना और बच्चों के कल्याण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाती है। यह न केवल उनकी संवेदनशीलता को दिखाता है, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को भी सामने लाता है।

सुरेंद्र हिंदुस्तानी आज भी शिलाई क्षेत्र के गरीब परिवारों के लिए मददगार बने हुए हैं। जब भी शिलाई क्षेत्र से कोई गरीब व्यक्ति नाहन अस्पताल में इलाज के लिए आता है, तो सुरेंद्र जी न केवल उनकी दवाइयों का खर्च उठाते हैं, बल्कि उनके आने-जाने की व्यवस्था भी करते हैं। उनका यह सेवा भाव क्षेत्र के लोगों के लिए एक वरदान है। यह उनकी निस्वार्थ भावना और सामाजिक जिम्मेदारी को दर्शाता है।

व्यक्तिगत जीवन
सुरेंद्र हिंदुस्तानी की शादी 1994 में हुई। उनके दो बेटे हैं—एक ने वकालत की पढ़ाई कर प्रैक्टिस शुरू की है और दूसरा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। वे अपने परिवार को उच्च शिक्षा और बेहतर जीवन देने में विश्वास रखते हैं और उन्हें अपने जीवन में पारिवारिक मूल्यों को अत्यधिक महत्व देते हैं।

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