अन्तर्राष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला धूमधाम के साथ शुरू

श्री रेणुका जी: अन्तर्राष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेला आज भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली में धूमधाम के साथ शुरू हो गया | पारम्परिक शोभा यात्रा के श्री रेणुका जी तीर्थ पर पहुंचने के साथ ही यह मेला पूरे हर्षोल्लास केे साथ शुरू हुआ । अन्तर्राष्ट्रीय श्री रेणुका जी मेले के शुभारंभ अवसर पर हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव आर.डी. धीमान ने ददाहू खेल मैदान में देवाभिनन्दन के पश्चात देव पालकीयो को कंधा देकर शोभायात्रा का शुभारंभ किया |

लगभग 6 दिनों तक चलने वाले जिला सिरमौर के सबसे बडे वार्षिक धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सव का शुभारंभ परम्परा के अनुसार हिमाचल के मुख्यमन्त्री ही किया करते थे, लेकिन इस वर्ष चुनाव के कारण चुनावी आचार संहिता लागू होने के कारण मुख्यमन्त्री जय राम ठाकुर मेले का शुभारम्भ नहीं कर पाये |

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भगवान परशुराम की पारम्परिक शोभा यात्रा के ददाहू बाजार मे से होती हुइ ढोल नगाड़ों की मधुर ध्वनि के बीच श्री रेणुका जी पहुंची । ददाहू बाजार में इस अवसर पर देव पालकियों के दर्शनों के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ी, लोगों ने बड़ी ही श्रद्धा भाव के साथ देव पालकीय को शीश नवाया और भगवान परशुराम जी के दर्शन किए। जहां-जहां से भी होकर शोभा यात्रा निकली लोगों का हुजूम दर्शनों के लिए उमड़ा। इस अवसर पर भगवान परशुराम व माता श्री रेणुका जी के जयकारों से हर और माहौल भक्तिमय हो गया।

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार सप्तऋषियों मे एक यमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी भगवती श्री रेणुका के साथ हिमाचल के कुलूत प्रदेश के मलाणा मे विश्व के पहले लोकतन्त्र की स्थापना करने के बाद मध्य हिमालयी ऋंख्लाओं को लांघते हुए रेणुका झील के ठीक उपर तपे के टीले पर पधारे तथा वहां शिव भक्ति मे लीन हो गये। महऋषि यमदग्नि व भगवती रेणुका के तप से प्रसन्न हो कर भगवान ने वर दिया कि भगवान श्रीहरि विष्णु उनके पुत्र के रूप मे अपना छटा अवतार धारण करेंगे।

समय पर भगवान परशुराम ने महऋषि यमदग्नि व भगवती रेणुका के पुत्र के रूप मे अवतार लिया जिनका नामकरण राम (ब्रहमाण्ड पुराण) के रूप मे किया गया। उनका नाम राम से बदल कर परशुराम तब हो गया जब उन्होने अपने कठोर तप से भगावान शिव को प्रसन्न कर उनसे दिव्यास्त्र परशु ग्रहण किया। परशुधारक परशुराम का ही वर्णन सकल सनातन शास्त्रों मे मिलता है।

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एक समय आर्यावर्त के अत्याचारी एवं अभिमानी राजा सहस्त्रबाहु ने भगवान परशुराम की अनुपस्थिति मे महऋषि यमदग्नि के तपे के टीले के आश्रम पर अपनी पूरी सैन्य शक्ति के साथ आक्रमण किया तथा महऋषि यमदग्नि से कामधेनु गाय की मांग की। महऋषि यमदग्नि ने यह कहते हुए कामधेनु गाय देने से इनकार कर दिया कि वह देवराज इन्द्र की अमानत है तथा उसे आगे किसी को भी नहीं दिया जा सकता है। इससे क्रोधित हो सहस्त्रबाहु ने महऋषि यमदग्नि की हत्या कर दी। भगवती रेणुका ने पर्वत के नीचे राम सरोवर मे कूद कर जलसमाधि ले ली। पुराणो के अनुसार भगवती रेणुका के राम सरोवर मे कूदते ही राम सरोवर स्त्री के आकार का हो गया तथा रेणुका झील कहलाया।

महेन्द्र पर्वत पर तपस्यारत भगवान परशुराम को इस घटना की जानकारी होते ही वह तपे के टीला आश्रम पर पहुंचे तथा एक भयंकर युद्ध मे राजा सहस्त्रबाहु को सेना सहित मार डाला। भगवान परशुराम ने अपने तपोबल से महऋषि यमदग्नि को जीवित कर दिया तथा रेणुका झील के किनारे प्रार्थना कर भगवती रेणुका का आहवान किया। भगवती रेणुका पुत्र की पुकार सुन झील से बाहर आई तथा कहा कि वह स्थाइ रूप से झील मे ही निवास करेगी व वर्ष मे सिर्फ एक बार देवप्रबोधिनी एकादशी के पावन अवसर पर अपने पुत्र से मिलने के लिए झील से बाहर आयेगी। इस अवसर पर जो भक्त वहां उपस्थित होंगे उन पर उनकी दिव्य कृपा की वर्षा होगी तथा उनकी हर मनोकामना पूरी होगी। इसी अवसर पर पौराणिक काल से रेणुका मे मेला भरता है। रेणुका तीर्थ तथा इसकी महिमा का वर्णन अनेक पुराणों व प्राचीन शास्त्रों मे मिलता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु रेणुका आते हैं।

इस मेले का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है क्योंकि अनेक पुराणों मे रेणुका मे मेले का जिक्र मिलता है। इसी प्रकार भगवान परशुराम द्वारा अत्याचारी, पापी एवं अभिमानी राजाओं का वध कर 21 बार पृथ्वी को खाली करने का भी वर्णन मिलता है।